शादी और त्यौहारों का मौसम मतलब खूब धूम–धड़ाका और खूब खाना-पीना. ठन्डे से लेकर गरम तक, खट्टे से लेकर मीठा कुछ भी मिल जाए कुछ छूटना नहीं चाहिए. बस कहीं से बुलावा आने की देर है तैयार तो हम हमेशा ही रहते हैं.
लेकिन मन खट्टा हो जाता है अगर कहीं बाहर से निमंत्रण आ जाये, चलिए अगर दूर के रिश्तेदार के यहाँ से निमंत्रण आए तो गोला दे सकते हैं लेकिन अगर वहीं किसी दोस्त या किसी खास के यहाँ से निमंत्रण आ जाए तो जाना भी ज़रुरी हो जाता है. ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी समस्या सताती है रिजर्वेशन की. अगर रावण का उड़नखटोला होता हम सर्र से कहीं भी पहुंच जाते. लेकिन यह भारतीय रेलवे है – कहते तो हैं सदैव हमारे साथ लेकिन अभी तक तो कभी नहीं दिखे हमारे साथ. इनके यहां कभी रिजर्वेशन तो मिलता नहीं है क्या खाक रखेंगे यह हमारा ख्याल. कहीं भी जाना हो हमेशा तत्काल टिकट के सहारे रहना पड़ता है. चलिए तीन– चार घंटे का सफ़र होता हो खड़े–खड़े ही चल जाता, लेकिन आठ घंटे का सफ़र खड़े–खड़े नहीं झेल सकते और कहीं रात का सफ़र हो तो फिर भगवान भरोसे हो जाती है पूरी यात्रा.
लेकिन कोई यह बताए कि इतने टिकट जाते कहां हैं? रेलगाड़ी में डिब्बे तो हमेशा उतने ही रहते हैं और कभी–कभी इन डिब्बों में काफ़ी सीटें खाली भी मिलती है. फिर भी हमेशा टीटीई के साथ सीट के लिए मोलभाव करना पड़ता है. यही नहीं जैसे ही रेलवेस्टेशन पहुँचो तो दो लोग जान खा लेते हैं. पहले कुली – भले आपके पास एक पॉलीथीन सामान के रूप में हो वह पूछते ज़रूर हैं कि – कहीं कुली तो नहीं चाहिए. रेलवेस्टेशन में जान खाने वाले दूसरे व्यक्ति का नाम है ‘टिकट माफिया का.’
आपने भूमि माफिया, ड्रग्स माफिया और यहां तक तेल माफिया का नाम सुना तो होगा ही लेकिन कभी टिकट माफिया का नाम सुना है? नहीं ना, आप इन्हें जानते ज़रूर हैं लेकिन, दूसरे नाम से, टिकट एजेंट के नाम से. माफिया नाम अच्छा नहीं लगता तभी यह अपने आपको टिकट एजेंट कहते हैं, नए ज़माने का अंग्रेजी नाम. सभी का रेलवे रिजर्वेशन काउंटर से प्रेमी-प्रेमिका जैसा रिश्ता होता है. आप रिजर्वेशन कराने जाएं तो इस बात की गारंटी नहीं होती कि आपको टिकट मिलेगा या नहीं, लेकिन इनका कोटा तो पहले से ही तय होता है जैसे कहीं के प्रधानमंत्री हों. और जैसे ही आप रेलवेस्टेशन पहुंचते हैं वैसे ही यह आपको घेर लेते हैं क्योंकि इनके पास होती है सीट !
जाना भी ज़रुरी है और कहीं जाना है तो सीट की ज़रूरत तो होगी क्योंकि खड़े -खड़े सफ़र नहीं किया जा सकता. सीट के लिए आप अधिक पैसा देने के लिए भी तैयार रहते हैं. ऐसे में शुरू होता है टिकट माफिया का खेल….. 500 रु की सीट का दाम हो जाता है 1,000 रु. कभी–कभी तो यह दाम तीन गुना भी हो जाता है. यहीं नहीं कभी–कभी तो यह किसी दूसरे के नाम का टिकट आपको थमा देते हैं और अगर आपने सही से पीएनआर नंबर चेक नहीं किया तो आपका टिकट निकल सकता है फर्जी. यानि सभी जगह गोलमाल ही गोलमाल. टिकट माफिया तो पैसा कमा लेते हैं लेकिन फंस जाते हैं आप.
तत्काल टिकट का नया नियम
लेकिन अब लगेगा लगाम टिकट माफिया पर क्योंकि आने जा रहा है नया नियम जिसके अनुरूप अब अगर आपके पास तत्काल टिकट है तो आपको दिखाना होगा टीटीई को अपना पहचान पत्र. यह नियम इसी महीने की 11 तरीख से लागू किया जा रहा है. 1997 से रेलवे ने तत्काल टिकट का प्रावधान किया गया था जिसके बाद तत्काल सेवा के टिकटों पर दलालों का कब्ज़ा बढ़ने लगा था. वह पहले से ही सारे टिकट खरीद लेते हैं और बाद में उसे ऊँचे दाम में बेचते हैं.
पहचान पत्र की सूची
1. मतदाता प्रमाणपत्र
2. पासपोर्ट
3. पैन कार्ड
4. ड्राइविंग लाइसेंस
5. राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा दिया पहचान पत्र
6. फोटो वाली पासबुक
7. फोटो वाला एटीएम कार्ड
8. छात्रों को मान्यता प्राप्त कॉलेजों और स्कूलों द्वारा दिए गए पहचान पत्र
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