प्रकृति सबकी देखभाल अपने बच्चों की तरह करती है लेकिन अगर यह अपने विध्वंसक रुप में आ जाए तो परिणाम कितना भयानक हो सकता है यह वही जान सकता है जो 11 मार्च 2011 को जापान में उपस्थित था और खासकर उसके तटीय इलाकों में. किस तरह तकनीक के सहारे दुनिया भर में राज करने वाले देश को प्रकृति ने अपनी मार के आगे झुका दिया यह पूरी धरती ने देखा. मौत और विनाश की ऐसी लीला पिछले कई सौ सालों में जापान ने तो क्या दुनिया ने भी नहीं देखा था.
यूं तो जापान को सुनामी और भूकंप का देश माना ही जाता है क्यूंकि हर चार या पांच साल में एक ना एक बार जापान को प्राकृतिक आपदा का सामना करना ही पड़ता है. जापान अपनी तकनीक और कार्यकुशलता के लिए हमेशा से ही दुनिया में अव्वल रहा है लेकिन जब बात प्रकृति से लड़ने की आती है तो वह बहुत लाचार दिखता है, लेकिन हमें यहां जापान की आपदा प्रबंधन की तारीफ भी करनी होगी जो उसने इस प्रलय के पल भर में ही अपने आप को संभालना शुरु कर दिया और दुनिया के सामने एक उदाहरण रखा कि कैसे आग लगने से पहले ही कुंआ खोदना बेहतर होता है.
उगते सूरज के देश में शुक्रवार को कुदरत का कहर बरपा. शक्तिशाली भूकंप और उसके बाद आई विनाशकारी सुनामी ने जापान में भारी तबाही मचाई है. रिक्टर पैमाने पर 8.9 तीव्रता वाले भूकंप का केंद्र देश के उत्तरपूर्वी तट से 125 किमी दूर प्रशांत महासागर में 10 किमी की गहराई में स्थित था. देश में पिछले 140 साल में आया यह सबसे भीषण भूकंप है. इसके असर से समुद्र में 33 फीट से ज्यादा ऊंची लहरें उठीं. इन लहरों में मकान, जहाज, कारें और बस खिलौनों की तरह बहे जा रहे थे. इस विनाशलीला में सैकड़ों लोगों के मारे जाने की आशंका है.
भूकंप के कारण पैदा हरुई सुनामी लहरों के सैलाब ने जापान के मियागी और फुकुशिमा क्षेत्रों में खेतों, रिहायशी इलाकों को जलमग्न कर दिया. मियागी के तटीय शहर सेंदई में सैलाब ने कहर ढाया. सेंदई एयरपोर्ट लहरों में डूब गया.भूकंप के कारण जापान के पांचों परमाणु संयंत्र स्वत: बंद हो गए. परमाणु आपातकाल लागू किया गया है. उड़ानें रोक दी गई हैं, बुलेट ट्रेन भी रुक गई.सुनामी से मियागी की राजधानी सेंदई पूरी तरह तबाह हो गया है और सेनुआ में भयंकर आग लगी हुई है. दो प्रांत मियागी और फुकुशिमा में जबर्दस्त बर्बादी हुई है.
यह सब कुछ इस कदर हुआ कि लोगों के पास संभलने का मौका भी नहीं मिला. जब तक देश में सुनामी की सुचना दी जाती तब तक सुनामी की लहरें उगते सुरजे के देश में प्रलय मचाने पहुंच चुकी थीं. ऐसा माना जा रहा है कि हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के बाद जापान में पहली बार इतनी बड़ी आपदा आई है. अभी तक मरने वालों की कोई सही संख्या तो प्राप्त नहीं हुई है पर ऐसा माना जा रहा है कि यह सीमा बहुत ज्यादा होगी.
हम चाहे तकनीक के सहारे कितना भी आगे निकल जाए पर हम प्रकृति के सामने बौने ही रहेंगे यह हमें मानना ही पड़ेगा. जापान में तकनीक के सहारे आगे बढ़ने की चाहत में वहां की प्राकृतिक संरचना के साथ बहुत खिलवाड़ हुआ था. आज जापान का हाल ऐसा है कि वहां हर तरफ बड़ी बड़ी इमारते और ऊंची ऊंची बिल्डिंगें ही दिखाई देती हैं जो कहीं न कहीं भूकंप जैसे आपदाओं को निमंत्रण देती नजर आती है.
इस भारी आपदा ने हमारे सामने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे सुनामी जैसी गंभीर विपदा का हम पूर्वानुमान लगा सकें. या हमें हमेशा की तरह प्रकृति के आगे यूं ही घुटने टेकते रहना पड़ेगा.
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