यूं तो देश में आए दिन कोई न कोई बड़ा नेता अनशन पर बैठता रहता है लेकिन कभी वह निजी फायदे के लिए होता है तो कभी किसी राज्य विशेष की मांग के लिए लेकिन इस बार समाजसेवी अन्ना हजारे एक ऐसी चीज के लिए आमरण अनशन पर बैठे हैं जिसके बारे में नेताओं ने सोचा तो कई बार पर निजी फायदे के लिए कभी इस कोई कार्यवाही नहीं की.
प्रधानमंत्री की अपील को अस्वीकार करते हुए जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए लोकपाल को अधिक अधिकार दिए जाने की मांग पर आमरण अनशन शुरु कर दिया है. बीता साल तो भारत के लिए घोटालों और भ्रष्टाचार से भरा रहा. ऐसे में देश के सामने कई ऐसे उदाहरण आए जिन्होंने भ्रष्टाचार की नई परिभाषा लिखी और ऐसे घोटालेबाजों में नेताओ और आला सरकारी अफसरों की भारी मात्रा में संख्या रही. इसी स्थिति से निपटने के लिए अन्ना हजारे ने जन लोकपाल विधेयक को लागू करने की मांग खड़ी कर दी है.
हजारे ने कहा, “मैं तब तक आमरण अनशन पर रहूंगा जब तक सरकार जन लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाने वाली संयुक्त समिति में 50 प्रतिशत अधिकारियों के साथ बाकी स्थानों पर नागरिकों और विद्वानों को शामिल करने पर सहमत नहीं हो जाती.”
जनलोकपाल विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े, वक़ील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मिलकर तैयार किया है.
भ्रष्टाचार विरोधी कानून के नाम से जाने वाले लोकपाल विधेयक की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्न हैं :
जन लोकपाल बिल के पास होने से सरकार को चलाने वाले घेरे में आ जाएंगे और यही वजह है कि सरकार बार-बार आवाज उठाने के बाद भी इस विधेयक को पास नहीं करना चाहती. अन्ना हजारे के साथ देश के कई राजनेता इस आमरण अनशन में अन्ना के साथ हैं लेकिन देश में भ्रष्टाचार की जड़े कुछ इस तरह फैल चुकी हैं कि आज नेताओं और आम लोगों को अन्ना का अनशन भी एक पब्लिक स्टंट लगता है.
अन्ना हजारे उन चन्द लोगों में से हैं जो अपने निजी स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि समाज कल्याण के लिए इस देश की सरकार को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं. प्रधानमंत्री द्वारा बार-बार अन्ना को अनशन से रोकने का मकसद साफ है कि खुद प्रधानमंत्री भी इस विधायक को पास करने की चाहत नहीं रखते. अगर सरकार जन लोकपाल विधेयक को पारित कर देती है तो उम्मीद है देश में बढ़ते भ्रष्टाचारों की संख्या में प्रभावी कमी होगी.
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