तमाम कयासों के बाद अंततः एक महापुरुषीय गाथा का देहावसान हो गया जब 24 अप्रैल, 2011 को पुट्टपर्थी वाले बाबा सत्य साईं ने इस नश्वर दुनियां को अलविदा कहा. भक्तों के दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को उनके आश्रम में रखा गया है जहां बुद्धवार 27 अप्रैल 2011 को उनका अंतिम संस्कार होगा.
एक छोटे से बालक से दुनिया के भगवान बनने तक का सफर यूं तो हमने अधिकतर किताबों और कहानियों में ही पढ़ा है पर श्री सत्यसाई इसका अपवाद थे. कभी संस्कृत का एक शब्द भी ना जानने वाले साईं बाबा के जीवन में एक बार ऐसा चमत्कार हुआ कि वह संस्कृत में श्लोक पढ़ने लगे. इंसान का खुद को भगवान बताना तो पागलपन होता है लेकिन उसी इंसान का अपनी बात को सिद्ध करना एक चमत्कार होता है.
आन्ध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गांव में 23 नवंबर 1926 को सत्यनारायण राजू का जन्म एक आम मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. वे बचपन से बड़े अक्लमंद और दयालु थे. राजू संगीत, नृत्य, गाना, लिखना इन सबमें काफी अच्छे थे. ऐसा कहा जाता है कि बाबा बचपन से ही चमत्कार दिखाते थे.
आखिर कैसे बने सत्य साईं
सत्य साईं बाबा ने अपने गांव पुट्टापर्थी में तीसरी क्लास तक पढ़ाई की. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो बुक्कापटनम के स्कूल चले गए. इसी दौरान एक ऐसी घटना हुई जिसने सत्यानारायण राजू को श्री सत्य साईं बाबा बना दिया. दरअसल 8 मार्च, 1940 को सत्यनारायण राजू को एक बिच्छू ने डंक मार दिया. कई घंटे तक वो बेहोश पड़े रहे. उसके बाद के कुछ दिनों में उनके व्यक्तित्व में खासा बदलाव देखने को मिला. वो कभी हंसते, कभी रोते तो कभी गुमसुम हो जाते. उन्होंने संस्कृत में बोलना शुरू कर दिया जिसे वो जानते तक नहीं थे. डॉक्टर भी उनकी बीमारी के बारे में कुछ बता नही पाए.
23 मई, 1940 को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ. सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे. उनके पिता को लगा कि उनके बेटे पर किसी भूत का साया पड़ गया है. उन्होंने एक छड़ी ली और सत्यनारायण से पूछा कि कौन हो तुम? सत्यनारायण ने कहा कि मैं साईं बाबा हूं.
इस घटना के बाद उन्होंने अपने आप को शिरडी वाले साईं बाबा का अवतार घोषित कर दिया. शिरडी के साईं बाबा, सत्य साईं की पैदाइश से आठ साल पहले ही गुजर चुके थे. खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के बाद सत्य साई बाबा के पास श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी. साल 1944 में सत्य साईं के एक भक्त ने उनके गांव के नजदीक उनके लिए एक मंदिर बनाया जो आज पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है. उनके मौजूदा आश्रम प्रशाति निलयम का निर्माण कार्य 1948 में शुरू हुआ था और 1950 में ये बनकर तैयार हुआ था.
देश विदेश में अपनी प्रसिद्धी होने के बाद भी श्री सत्य साईं बाबा ने अपना ढ़ेरा अपने गांव पुट्टपर्थी में ही सीमित रखा. वह यदा कदा ही अपने राज्य से बाहर निकलते थे. श्री सत्य साईं बाबा की एक बात जो उन्हें सबसे महान बनाती थी वह थी उनकी शिक्षा जिसके अनुसार उनका कहना था कि मुझे (साईं) भगवान मानने के लिए आपको धर्म बदलने की जरुरत नहीं है. बस दिल से बाबा के भक्त बनो मैं आपका ख्याल रखूंगा. श्री सत्य साई बाबा का यह भी कहना था कि मैं और तुम सभी भगवान हैं बस फर्क इतना है कि मैंने अपने आप को पहचान लिया है और तुम अपने आप से बिलकुल अनजान हो.
श्री सत्य साई बाबा की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा है कि देश विदेश में इनके केन्द्र जगह जगह खुले हैं. बाबा को आने वाला दान पुण्य तामाम सामाजिक कामों जैसे अस्पताल और स्कूलों में खर्च होता है. देश विदेश में कई जगह श्री सत्य साईं बाबा के नाम से स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोले गए हैं. बाबा के भक्त हर साल लाखों-करोड़ों का दान करते हैं. बाबा के भक्तों में आम जनता से लेकर बड़े-बडे लोग शामिल हैं. श्री सत्य साईं की एक झलक के लिए उनके आश्रम में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है.
विवादों से घिरे भगवान
इतने परोपकारी और दिव्य पुरुष को भी समाज की टेढ़ी नजर का सामना करना ही पड़ा. उन पर समय समय पर लोगों को गुमराह करने, हाथ की सफाई को चमत्कार बता कर ठगने और शारीरिक शोषण जैसे आरोप लगते रहे हैं. एक समय ऐसा भी था जब देश के बड़े बडे जादूगरों ने बाबा को चुनौती दी थी. मशहूर जादूगर पीसी सरकार ने तो उनके सामने ही उन्हीं की तरह हवा से विभूति और सोने की जंजीर निकाल कर दिखा दी थी. इसके बाद भक्तों ने सरकार को धक्के मार कर आश्रम से बाहर कर दिया था. आश्रम में यौन शोषण और आर्थिक धोखाधड़ी के शिकार हुए कई लोगों की रपट जब भारत की पुलिस ने नहीं लिखी तो उन्होंने अपने उच्चायोगों और दूतावासों में शिकायत की और आखिरकार अपने देशों में जाकर शिकायत लिखवाई. इन शिकायतों का अब तक एक लंबा पुलिंदा तैयार हो चुका है. बाबा के भक्तों की संख्या और बाबा की पहुंच को देखते हुए सरकार भी कोई ठोस कदम उठाने से डरती रही. कथित तौर पर यह भी कहा जाता है कि बाबा के आश्रम में कई तरह की शर्मनाक गतिविधियां लंबे समय से चलती रही हैं और इनके बारे में कभी पुलिस रिपोर्ट तक नहीं लिखी गई. आरोप सामान्य शारीरिक संबंधों के अलावा समलैंगिक गतिविधियों के भी हैं और कई भक्तों का कहना है कि उन्हें मोक्ष दिलाने के बहाने उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए.
86 वर्षीय साईं बाबा को हृदय और सांस संबंधी तकलीफों के बाद 28 मार्च, 2011 को अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई. हालत नाजुक होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. लेकिन 24 अप्रैल 2011 को सत्य साईं बाबा ने जीवन का साथ छोड़ दिया.
आस्था, भक्ति और भगवान से जुड़ी यह कहानी श्री सत्य साईं बाबा की है जो बचपन में एक आम बालक थे लेकिन समय के साथ उनका स्तर बदल गया. पर सवाल यह है कि क्या बाबा का यह कहना कि हम सबमें भगवान है सही है या गलत. और अगर यह सही है तो क्यूं हम दूसरे भगवान की पूजा करें. श्री सत्य साईं बाबा कईयों के लिए पूजनीय और देवता समान थे तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो उन्हें ढोंगी बताते थे.
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