हिन्दी में एक कहावत है “एक अकेला चना क्या भाड फोड़ सकता है” अर्थात एक अकेला इंसान कोई बड़ा पहाड़ नही तोड़ सकता. लेकिन 23 जुलाई 2011 को नार्वे में एक अकेले सिरफिरे इंसान ने 93 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इस घीषण नरसंहार के बाद इस इंसान को गिरफ्तार तो कर लिया गया लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि इसे अपने कृत्य पर कोई अफसोस नहीं उलटा वह तो कहता है कि ऐसा करना जरुरी था.
नार्वे में 23 जुलाई को हुए दोहरे हमले को अंजाम देने वाले एक मुस्लिम विरोधी व अति दक्षिणपंथी विचारधारा वाले इंसान एंडर्स ब्रेविक का हाथ था. कभी नार्वे की दक्षिणपंथी प्रोग्रेस पार्टी का युवा नेता रहने वाला यह इंसान ऐसा खुंखार कैसे बन गया किसी को पता नहीं चल पा रहा है.
32 वर्षीय ब्रेविक ने शुक्रवार को यूटोया द्वीप पर सत्ताधारी लेबर पार्टी के शिविर पर अंधाधुंध गोलाबारी करके 85 लोगों की हत्या की और सरकारी इमारत में विस्फोट कर सात लोगों को मौत के घाट उतार दिया. नॉर्वे में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह सबसे भयावह घटना है.
प्रत्यक्षदर्शीय के अनुसार एंडर्स ब्रेविक अकेला ही फायरिंग कर रहा था. एंडर्स ब्रेविक कोई आतंकवादी है या नहीं इसका जवाब तो बाद में मिलेगा लेकिन यह पक्का है कि वह बहुत ही समझदार इंसान है. उसे फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब का इस्तेमाल करना तक आता है.
ब्रेविक द्वारा लिखे गए 1500 पन्नों के दस्तावेजों से उसके चरमपंथी विचार जाहिर होते हैं. इसके मुताबिक वह इस हमले की साजिश 2009 से रच रहा था. इंटरनेट पर इस दस्तावेज के कुछ हिस्से में ब्रेविंग ने इस्लाम के लिए अपनी नफरत और मार्क्सवाद के खिलाफ हमलों की जानकारी दी है. इसमें उसने लिखा है कि यूरोपीय गृह युद्ध मार्क्सवादियों को समाप्त करेगा और मुसलमानों को देश से बाहर निकालेगा. नार्वे में आतंकी हमला करने वाले एंडर्स बेहरिंग ब्रेविक ने 22 जुलाई को हमले वाले दिन इंटरनेट पर लिखा था कि मैं समझता हूं यह मेरी आखिरी एंट्री है.
आतंकवाद इस समय पूरे विश्व की एक बड़ी परेशानी बन चुका है लेकिन एंडर्स ब्रेविक जैसे लोगों का होना भी किसी देश के लिए एक बड़ा सरदर्द हैं. लेकिन एक इंसान क्यूं इतना रुढ़िवादी हो गया इसे समझना भी जरुरी है. यह घटना युवाओं में फैलती मानसिक अशांति का नतीजा भी माना जा सकता है.
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