भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ने वाले शांति भूषण पूर्व कानून मंत्री और वकील रह चुके हैं साथ ही वह लोकपाल पर विचार के लिए बनी संयुक्त समिति के को-चेयरमैन भी हैं. 80 साल के शांति भूषण, सीजेएआर यानी कैंपेन फॉर जूडीशियल एकाउंटबिलिटी एंड जूडीशियल रिफॉर्म्स के बैनर तले पिछले कई सालों से न्यायपालिका में सुधारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं.
आज अन्ना हजारे देश में जनता के हक के लिए लड़ रहे हैं लेकिन शांति भूषण देश के लिए कोई नई शख्सियत नहीं है. जनता के हक की लडाई शांति भूषण एमरजेंसी के दौर से ही लड़ रहे हैं. जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, तब उसका विरोध करने वालों में शांति भूषण ही सबसे आगे थे. शांति भूषण ने ही इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में राजनारायण का मुकदमा भी लड़ा था जिसमें इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था. बाद में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तब शांति भूषण को कानून मंत्री बनाया गया था. कानून मंत्री रहते हुए ही उन्होंने पहली बार देश में 1977 में लोकपाल बिल बनाया था जो सरकार गिरने की वजह से पास नहीं हो सका था.
पिता शांति भूषण और पुत्र प्रशांत भूषण की जोड़ी ने हमेशा ही जनता के हक की लड़ाई लड़ी है और भविष्य में भी दोनों का लक्ष्य देश में साफ-सुथरी न्याय व्यवस्था लाने का ही है.
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