टीम अन्ना पर लगातार लग रहे आरोपों और षडयंत्रों के बाद अब खुद अन्ना हजारे ने कह दिया है कि अन्ना कोर टीम में बदलाव का समय आ गया है. अन्ना ने अपने साथियों के बड़बोलेपन की वजह से मौन व्रत रखा था पर इससे भी उन्हें कुछ विशेष फायदा नहीं हुआ. नतीजन उन्होंने अपना मौन व्रत तोड़ दिया. अन्ना ने मौन व्रत तोड़ते ही सबसे पहले कांग्रेस सरकार और फिर अपनी टीम को आड़े हाथों लिया. लेकिन जो इंसान कुछ दिन पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद सरकार के सामने खड़ा था आज वही क्यूं सवालों के कटघरे में खड़ा है.
मीडिया का रोल
अन्ना हजारे ने जब से अनशन तोड़ा है तभी से कुछ मीडिया तत्व अन्ना हजारे के पीछे इस तरह से लगे हैं जैसे वह एक हीरो हैं. आखिर उनकी भी एक जिंदगी है लेकिन किसी ने इसके बारे में नहीं सोचा. अन्ना कब क्या कर रहे हैं इसकी पल-पल की खबर ऐसे फ्लैश की जा रही थी जैसे वह एक भगवान हैं. पर वह भूल गए कि अन्ना इंसान हैं जो जमीन पर रहते हैं. जो मीडिया सोच रहा था कि अन्ना ऐसे होंगे वैसे होंगे उन्हें अन्ना एक आम आदमी नजर आने लगा. नतीजा टीआरपी बढ़ाने के लिए कभी अन्ना की नौकरी छोड़ने तो कभी खुद अन्ना पर ही कीचड़ उछाल खबरें बनाने लगे. और जब इससे भी मन नहीं भरा तो अन्ना को ही गलत बना दिया गया. बाकि कसर उनकी टीम की पोल खोल कर की गई. हालांकि यहां इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मीडिया पैसे लेकर या किसी राजनैतिक पार्टी के कहने पर ऐसा कर रहा है.
अन्ना कोर टीम: विवादों की फसाद
अन्ना हजारे के नजदीकियों में मतभेद ने ही उनकी सबसे ज्यादा हालत खराब की. अग्निवेश तो पहले ही टीम से बाहर हो चुके थे और उन्होंने अन्ना कोर टीम के साथ रहते जो कुछ भी जाना उसके उलट ही बयान देते नजर आए. एक जगह तो यह खबर आई कि अग्निवेश अन्ना को “पागल हाथी” कह रहे थे, अब इसमें कितनी सच्चाई है वह खुद ही जानें. उसके बाद शांतिभूषण और प्रशांत भूषण ने अन्ना से अलग विचार प्रकट करने शुरू किए. प्रशांत भूषण ने कश्मीर पर ऐसा बयान दिया कि खुद अन्ना भी शर्मसार हो गए.
टीम की एकमात्र सशक्त महिला किरण बेदी पर भी ना जानें कहां से अतिरिक्त विमान किराया वसूलने का आरोप लगा जिसे बाद में उन्होंने अपने तर्क देकर स्वीकार किया. केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने चंदे में मिली रकम अपने ट्रस्ट के खाते में डाल दी. इसके अलावा दो सदस्य भी टीम से अलग हो गए.
इन सब ने टीम अन्ना को अंदर से खोखला कर दिया. कहते हैं जब घर का भेदी ही बाहर खबरें पहुंचाए तो लंका जलनी पक्की है. यहां भी वही हुआ.
क्या अन्ना मात्र एक मुखौटा हैं
जिस तरह से अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी वह तो तारीफ के काबिल है लेकिन अन्ना हजारे इस पूरे आंदोलन के अंदर एक कठपुतली की तरह दिखे. अन्ना हजारे के सहयोगियों ने ही हर जगह पहल की. चाहे रामलीला मैदान हो या कांग्रेस के साथ बात करने का मौका हर जगह अन्ना के सहयोगी ही गए. अन्ना खुद नहीं गए. नतीजा कहीं ना कहीं लोगों का विश्वास अन्ना पर से हटा है. आज लोगों को लगता है अन्ना सिर्फ वही कर रहे हैं जो उनकी टीम के सदस्य कह रहे हैं खासकर केजरीवाल और किरण बेदी.
अन्ना हजारे ने नई टीम के बारे में कहा कि नई टीम में अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों और युवाओं को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. पर यह टीम कब बनेगी इसके बारे में अन्ना ने साफ नहीं किया है.
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