साल 2009 में विश्व आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया था. हालात इतने खराब थे कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी चरमरा गई थी. इस आर्थिक मंदी ने बहुतों की नौकरी खा ली थी. विश्व ने ऐसा आर्थिक संकट बहुत सालों बाद झेला था पर इसका असर आज भी लोगों के जहन में है. आज भी लोग आर्थिक मंदी के आने के नाम से ही कांपने लगते हैं. लेकिन एक बार फिर हालात ऐसे हो गए हैं कि दुनिया को मंदी का सामना करना पड़ सकता है और इस बार दुनिया को पिछली बार की तरह भारत और चीन का सहारा भी शायद ना मिल पाए.
संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि दुनिया एक और आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि 2012 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि और कम रहेगी और यहां तक कि भारत और चीन जैसी तेजी से बढ़ती ताकतें भी इसे संभाल नहीं पाएंगी.
पिछली बार आर्थिक मंदी में चीन और भारत की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को सहारा मिला था. संयुक्त राष्ट्र की ‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं 2012‘ विषय की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले साल वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर घटकर 2.6 प्रतिशत रह जाएगी, जो 2010 में चार फीसदी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2012 का साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ‘करो या मरो’ का होगा.
संयुक्त राष्ट्र कहता है कि वैश्विक आर्थिक संकट के बाद दो साल में सुधार की गति काफी असमतल रही है और विश्व अर्थव्यवस्था एक बार फिर से मंदी के मुहाने पर आ खड़ी हुई है. रिपोर्ट में चेताया गया है कि एक और आर्थिक मंदी का जोखिम बढ़ गया है खासकर यूरोप और अमेरिका के नीति निर्माताओं की असफलता की वजह से बेरोजगारी का संकट दूर नहीं हो सका है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2012-13 में 7.7 से 7.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो 2010 में 9 फीसदी रही थी. चीन की वृद्धि दर के 2011 में घटकर 9.3 प्रतिशत और 2012-13 में 9 फीसदी पर आने का अनुमान लगाया गया है. 2010 में यह 10.4 प्रतिशत रही थी. खास बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने लगभग सभी प्रमुख देशों के लिए 2012 के अपने वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है. अमेरिका की वृद्धि दर के अनुमान को 0.7 फीसदी घटाकर 1.3 प्रतिशत किया गया है. इसी तरह जापान की वृद्धि दर के अनुमान को 1.3 प्रतिशत कम कर 1.5 फीसदी किया गया है. 27 देशों के यूरोपीय संघ की वृद्धि दर के अनुमान को 0.8 प्रतिशत घटाकर 0.5 फीसदी किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी और भी भयावह इसलिए लगती है क्यूंकि हाल ही में जिस तरह रुपए के भाव घटे हैं और महंगाई बढ़ी है उससे देश की आर्थिक स्थिति हिली हुई है. मंदी से निपटने के लिए भारत यूं तो सक्षम है पर कहते हैं ना जब चारों तरफ आग लगी हो तो थोड़ा बहुत सभी झुलसते ही हैं. ऐसा ही कुछ हाल मंदी की वजह से भारत का भी हो सकता है. निजी कंपनियों में बड़े पदों पर काम करने वाले और प्राइवेट कंपनियों को इसकी मार झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए. साथ ही आम आदमी को भी अभी से बचत करना शुरू कर देनी चाहिए जिससे वह आने वाले संकट से बच सकें.
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