इस साल जहां मिस्र और लीबिया में तानाशाहों का बहुत बुरा अंत हुआ वहीं उत्तर कोरिया के क्रूर शासक किम जोंग इल की भी मौत हो गई. दुनिया के कई हिस्सों में तानाशाही के खिलाफ आवाजें तेज हो गई हैं. अब जनता दबकर नहीं बल्कि ऊपर आकर रहना चाहती है. मिस्र, लीबिया, तहरीर चौक, ट्यूनीशिया आदि कई जगह लोगों ने क्रांति कर अपनी आजादी ली. साल 2011 में विश्व की राजनीतिक स्थिति में बेहद बदलाव आया है. और यह बदलाव कुछ बड़े तानाशाहों के मरने की वजह से भी आया है. लीबिया के पूर्व तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को जहां बुरी तरह मार दिया गया वहीं मिस्र के हुस्नी मुबारक को जेल में बंद कर दिया गया. आइए एक नजर डालते हैं विश्व के कुछ प्रमुख तानाशाहों पर:
सद्दाम हुसैन: इराक के इस तानाशाह को दिसंबर 2003 में अमेरिकी सैनिकों ने एक छोटे से तहखाने से खोज निकाला था. पकड़े जाने पर सद्दाम ने विरोध किए बिना आत्मसमर्पण कर दिया था. 5 नवंबर, 2006 को इराक की विशेष अदालत ने उन्हें मानवता के विरुद्ध अपराध में दोषी करार दिया और फिर फांसी पर चढ़ा दिया.
एडोल्फ हिटलर: दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह जर्मनी के एडोल्फ हिटलर ने 1945 में पत्नी इवा ब्राउन के साथ अपने बंकर में आत्महत्या कर ली थी. द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में जब सोवियत संघ की रेड आर्मी धीरे-धीरे बर्लिन पर अपना घेरा कस रही थी, तो हिटलर ने पकड़े जाने के डर से खुद को खत्म कर लिया था.
बेनिटो मुसोलिनी: हिटलर के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 27 अप्रैल, 1945 को वह अपनी पत्नी क्लारा पेटाकी और साथियों के साथ जान बचाने के लिए स्विटजरलैंड भाग रहे थे, लेकिन उनके ही देश के कम्यूनिस्ट अधिकारियों और सैनिकों ने मुसोलिनी और उनके साथियों को गोली से उड़ा दिया था.
निकोलाई चाउसेस्कू: रोमानिया के इस कम्यूनिस्ट तानाशाह का अंत भी बहुत बुरा हुआ था. वर्ष 1989 में क्रिसमस के दिन बुखारेस्ट में सेना के बंदूकधारियों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. कई सैनिकों में उसे मारने की होड़ थी. इस वजह से लॉटरी निकालकर यह तय किया गया कि निकोलाई का अंत कौन करेगा?
जोसेफ स्टालिन: इस रूसी तानाशाह ने राजधानी मॉस्को के निकट अपने घर में 5 मार्च, 1953 को अपने बिस्तर में ही दम तोड़ दिया. स्ट्रोक आने के बाद ही उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था. इस कुख्यात तानाशाह को दो करोड़ लोगों की मौत का जिम्मेदार माना जाता है. अपने शासन का विरोध करने के कारण उन्होंने इन लोगों को मरवाया था.
कर्नल मुअम्मर गद्दाफी: लीबिया के पूर्व तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी उसी सिर्ते शहर में मारे गए, जहां उनका जन्म हुआ और बचपन बीता था. अंतरिम सरकार के सैनिकों ने भागने की फिराक में एक सुरंग में छिपे बैठे कर्नल को पकड़ कर मार डाला. उन्हें सिर, पेट और दोनों पैरों में गोली मारी गई. लीबिया पर 42 वर्षो तक एकछत्र राज करने वाले तानाशाह मरने से पहले जान बख्शने के लिए सरकारी सैनिकों से खूब गिड़गिड़ाए. गद्दाफी के आखिरी शब्द थे- मुझेगोली मत मारो.
हालांकि कुछ तानाशाह ऐसे भी हैं जो अभी जिंदा हैं और अपने देश को गर्त की गुफा में ले जा रहे हैं. उनमें से प्रमुख हैं:
हू जिन्ताओ (चीन): दुनिया को भले ही चीन की गतिविधियों पर एतराज हो, पर राष्ट्रपति हू जिन्ताओ देश में काफी लोकप्रिय हैं. हू जिन्ताओ ने चीन में मानवाधिकारों और लोकतंत्र का जम कर मजाक उड़ाया है. उनके शासन काल में सिर्फ 5 प्रतिशत आपराधिक मामले ही अदालतों में जा पाते हैं. इस देश में सजा की दर 99.7 फीसदी है. उनके शासन काल में चीन मौत की सजा देने के लिए कुख्यात हो रहा है. यहाँ कोई निजी टीवी चैनल या रेडियो स्टेशन नहीं है. कड़े सेंसरशिप कानून के चलते सरकार ईमेल, फोन कॉल्स, फैक्स, ईमेल, लिखित संदेश या पाठ्य सामग्री आदि की पूरी निगरानी रखती है.
किंग अब्दुल्ला (सउदी अरब): 1995 से सत्ता पर कब्जा जमाए बैठे हैं सउदी शाह किंग अब्दुल्ला. आज भी सऊदी अरब में महिलाएं गाड़ी ड्राइव नहीं कर सकती हैं. परिवार के पुरुष सदस्यों की अनुमति के बगैर नौकरी करना तो दूर वह घर से बाहर शॉपिंग करने भी नहीं निकल सकती हैं. किंग अब्दुल्ला के शासन काल में सऊदी अरब में मानवाधिकारों का जमकर उल्लंघन हुआ.
उमर अल बशीर (सूडान):62 वर्षीय बशीर 1989 में एक विद्रोह का नेतृत्व करने के बाद सत्ता पर काबिज हुए और आज तक सूडान के सर्वेसर्वा हैं. पश्चिमी सूडान के दारफुर में फरवरी 2003 से अब तक बशीर के शासनकाल में 1 लाख 80 हजार लोगों को मौत के घाट उतारा जा चुका है और 20 लाख से ज्यादा बेघर हो गए हैं. बशीर के सैनिकों का वर्चस्व अभी तक यहाँ पर कायम है. अब उत्तरी अफ्रीका में फैलती बेचैनी से सूडान भी विचलित होने लगा है.
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