Menu
blogid : 314 postid : 1373

वर्ष 2012 राष्ट्रीय मैथमेटिकल ईयर

ramanujan 2

श्रीनिवास रामानुजन एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा का नाम है जिसने अपनी प्रतिभा से दुनियाभर के शिक्षाविदों को आश्चर्यचकित कर दिया था. भारत के महान गणितज्ञ रामानुजन ने गणित के उन सवालों को हल करने में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था जिन्हें आज विद्यार्थी अत्याधिक जटिल और असंभव समझते हैं. बीते सोमवार को चेन्नई में हुए एक कार्यक्रम के दौरान भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसी महान गणितज्ञ को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वर्ष 2012 को राष्ट्रीय मैथमेटिकल ईयर घोषित किया है. इसके अलावा श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस 22 दिसंबर को हर वर्ष राष्ट्रीय मैथमेटिकल डे के रूप में मनाए जाने का भी एलान किया गया है.


श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जीवन परिचय

22 दिसंबर, 1887 को इरोड (तमिलनाडु) के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्में श्रीनिवास अयंगर रामानुजन ने दस वर्ष की आयु में गणित का औपचारिक प्रशिक्षण लेना प्रारंभ किया. प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद रामानुजन ने तेरह वर्ष की छोटी सी आयु में ही ‘लोनी’ कृत विश्व प्रसिद्ध त्रिकोणमिति को हल किया और पंद्रह वर्ष की अवस्था में जार्ज शूब्रिज कार कृत `सिनोप्सिस ऑफ़ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एण्ड एप्लाइड मैथेमैटिक्स‘ का अध्ययन किया. इस पुस्तक में दी गयी लगभग पांच हजार थ्योरम को रामानुजन ने सिद्ध किया और उनके आधार पर नई थ्योरम विकसित की. हाई स्कूल में अध्ययन के लिए रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती थी परंतु रामानुजन के द्वारा गणित के अलावा दूसरे सभी विषयों की उपेक्षा करने पर उनकी छात्रवृत्ति बंद कर दी गई. उच्च शिक्षा के लिए रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय गए परंतु गणित को छोड़कर शेष सभी विषयों में वे फेल हो गए. इसके बाद रामनुजन की औपचारिक शिक्षा पर पूर्ण विराम लग गया लेकिन फिर भी उन्होंने गणित में शोध करना जारी रखा.


ramanujanकुछ समय बाद उनका विवाह हो गया और वह नौकरी खोजने लगे. नौकरी खोजने के दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के संपर्क में आए. इन्होंने ‘इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी’ की पत्रिका के लिए प्रश्न एवं उनके हल तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया, जिसके लिए उन्हें 25 रुपए प्रतिमाह मिलते थे. सन् 1911 में बर्नोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलवाई. जल्द ही वह मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे. सन् 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे.


सन् 1913 में इन्होंने जी. एम. हार्डी को एक पत्र लिखकर अपनी विभिन्न प्रमेयों (थ्योरम) की सूची भेजी. हार्डी को लगा कि रामानुजन की इस प्रतिभा को दूसरों के सामने लाया जाना चाहिए. दोनों के बीच पत्र व्यवहार शुरू हुआ और हार्डी किसी तरह रामानुजन को कैंब्रिज लाने में भी सफल हुए. रामानुजन को गणित की कुछ शाखाओं का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था पर कुछ क्षेत्रों में वह अद्भुत थे. हार्डी ने रामानुजन को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया. सन् 1916 में रामानुजन ने कैंब्रिज से बी.एस.सी. की उपाधि प्राप्त की.


सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे. इंग्लैण्ड का मौसम और कड़ा परिश्रम उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ. तपेदिक से पीड़ित होने के कारण वह वर्ष 1919 में वह भारत वापिस लौट आए. अत्याधिक स्वास्थ्य खराब होने के कारण अगले ही वर्ष 26 अप्रैल, 1920 को मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का देहांत हो गया.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to nancy4vayeCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh