Scandals in India
अगर आपने पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को ध्यान से देखा हो तो कुछ बातें आपके दिमाग में साफ होंगी. साल 2008 में आई फिल्म “फैशन” ने समाज में महिलाओं के अति-महत्वाकांक्षी होने की सूरत में रास्ते से भटकने की कहानी को दर्शाया था. इसके बाद हाल के भंवरी देवी केस ने भी लोगों को यह आइने की तरह साफ करके दिखा दिया कि महिलाएं किस कदर राजनीति जैसे क्षेत्रों में सफल होने के लिए अच्छे-बुरे के बीच को फासले को खत्म कर अपनी जान तक को दांव पर लगा सफलता की सीढ़ियां चढ़ने को आतुर रहती हैं. और अब शेहला हत्याकांड ने भी समाज की कड़वी सच्चाई को सबके सामने रखा है.
पद और पैसा आते ही बुराइयां आ ही जाती हैं. आरटीआइ कार्यकर्ता शेहला मसूद हत्याकांड में भाजपा की हो रही फजीहत को देखकर इस बात पर आसानी से भरोसा नहीं होता कि इस पार्टी का संबंध उस आरएसएस से हो सकता है जो अपने स्वयंसेवकों से जिंदगी भर अविवाहित रहकर देशसेवा की उम्मीद करती है.
शेहला की हत्या के खुलासे से प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में वह सनाका खिंच गया है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. मामला उजागर होने पर तहलका मचेगा यह तो सब जानते थे, लेकिन शेहला की हत्या का सच सेक्सऔर सत्ता की चासनी में डूबा होगा, इसका अंदाजा तो सिवाए उन दो-चार लोगों के अलावा किसी को नहीं था जो सीबीआई के खुलासे से पहले खुद को जनता का सेवक, इंटीरियर डिजायनर और आरटीआई कार्यकर्ता बता रहे थे.
शेहला मामले पर भले ही फिलवक्त बवंडर हो रहा हो और सीबीआई उनसे पूछताछ कर रही हो पर राजनीति में यह कोई पहला मामला नहीं है. कहना न होगा कि सत्ता के मद में सेक्स की चाह अक्सर ही बलवती होती रही है. प्रदेश में ऐसे कई नेता हैं जो महिलाओं से संबंधों को लेकर चर्चा में रहे और आरोपों के घेरे में भी, इन आरोपों की सच्चाई भले ही पर्दे से बाहर न आ पाई हो.
सरला कांड का सच क्या है?
कांग्रेस की इस नेत्री की करीब तेरह साल पहले अपने ही घर में संदिग्ध परिस्थितियों में जलकर मौत हो कई थी. कांग्रेस की इस दबंग नेत्री की मौत से प्रदेश ही नहीं देश के सियासी हल्कों में तूफान आ गया था. सरला की मौत के बाद कांग्रेस के कई नेताओं के नाम चर्चा में आए थे. सरला को किसने मारा, क्यों मारा इसे लेकर भी ढेरों कहानियां चर्चा में आईं लेकिन कानून के सामने जो सबूत बन सके ऐसा एक भी सच सामने नहीं आ पाया. इस मामले की जांच सीबीआई को भी सौंपी गई पर जांच में इस एजेंसी को भी कोई सुराग नहीं मिला.
बाबूलाल गौर
प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते मंत्री बाबूलाल गौर भी शुगुफ्ता कबीर, समीना कबीर और एक अन्य महिला से कथित संबंधों के कारण चर्चा में आए थे. बाकायदा पत्रकार वार्ता करके उन पर इस तरह के आरोप मढ़े गए थे. मामला सामने आने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. समय के साथ बाद में यह मामला ठंडा पड़ गया.
कारूलाल सोनी
भाजपा के मंदसौर के इस जिलाध्यक्ष को पार्टी की एक कार्यकर्ता से कथित रूप से अवैध संबंध रखने के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा था. 60 साल से अधिक उम्र के सोनी को एक महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया था. मामला 2011 का था. सोनी पर आरोप था कि पार्षद का टिकट दिलाने के लिए उन्होंने एक महिला का कथित रूप से दैहिक शोषण किया. पार्टी की स्थानीय गुटबाजी के चलते उनसे जुड़े अश्लील फोटो सार्वजनिक होने के बाद पार्टी ने उन्हें पद से हटा दिया था.
शानू को भोपाल से भगाओ
एक थी शानू खान. दिग्विजय सिंह के पहले कार्यकाल ने इस हुस्न परी ने राजधानी की सत्ता से जुड़ी सियासत की नैतिकता की चूलें हिला दी थीं. ग्वालियर से आई इस अतिमहत्वाकांक्षी रूपसी बाला के फेर में कई नेता व तत्कालीन मंत्री फंस गए थे. उस समय के चार मंत्री तो इसकी दीवानगी में अपने पद की गरिमा तक को ताक पर रखने को आतुर थे. मामला इतना तूल पकड़ा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा. उन्होंने तब डीजीपी से कहा था कि “यह शानू कौन है जो मंत्रियों को खराब कर रही है. इसे भोपाल से भगाओ.“
तत्कालीन महिला थाना प्रभारी भोपाल ने इसके बाद शानू को भोपाल से रूखसत कर दिया था. शानू अब कहा है, कोई नहीं जानता.
संजय जोशी ने झेला राजनीतिक वनवास
भाजपा के संगठन महामंत्री रहे संजय जोशी आज से छह साल पहले अपनी एक विवादित सीडी को लेकर चर्चा में आए थे. कहा जाता था कि यह सीडी कथित तौर पर मध्यप्रदेश में तैयार की गई थी. इस सीडी में वे एक महिला के साथ कथित तौर पर आपत्तिजनक हालत में थे. तब इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि संजय जोशी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इस मामले में आरोपों के घेरे में आये इस भाजपा नेता को सालों राजनीतिक गुमनामी के अंधेरों में रहना पड़ा. कुछ महीने पहले ही पार्टी में उनका राजनीतिक पुनर्वास हुआ है.
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