भारतीय राजनीति में राजीव गांधी की छवि एक बेहद साफ और ईमानदार नेता की रही है. इस नेता ने अपने छोटे से कार्यकाल में ईमानदारी और सुशासन की जो रूपरेखा लिखी उसकी लोग आने वाले लंबे समय तक कसमें खाते रहे. लेकिन राजीव गांधी के पाक-साफ दामन पर भी बोफोर्स का काला दाग लगा हुआ है. यह एक ऐसा दाग है जिसने राजीव गांधी की सरकार तक गिरा दी थी. यह जिन्न जब भी बाहर निकलता है कांग्रेस के पसीने छूट जाते हैं.
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दरअसल बोफोर्स घोटाला यूं तो एक आम घोटाला है लेकिन जिस परिस्थिति में यह घोटाला हुआ उसे यह देश कभी नहीं भूल सकता है. 1986 में भारत सरकार ने स्वीडन की एक कंपनी एबी बोफोर्स से 155 एमएम की 410 होवित्जर बोफोर्स तोपें खरीदी थीं. कुल सौदा 1437 करोड़ रुपये में हुआ था. सौदे में स्वीडिश हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स से क्वात्रोची पर दलाली का आरोप लगा. बोफोर्स खरीद में 1.42 करोड़ डालर के रिश्वत मामले का पर्दाफाश सबसे पहले स्वीडिश रेडियो ने किया था.
आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला. कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था. आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बांटी थी. यह ऐसा मसला है, जिस पर 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गई थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो के तौर पर उभरे थे. यह अलग बात है कि उनकी सरकार भी बोफोर्स दलाली का सच सामने लाने में विफल रही थी. बाद में भी समय-समय पर यह मुद्दा देश में राजनीतिक तूफान लाता रहा.
साथ ही इस मामले में एक नया खुलासा हुआ कि बोफोर्स घोटाले में बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन को फंसाने और मुख्य आरोपी क्वात्रोची को बचाने की साजिश रची गई थी. यह अहम खुलासा किया है एक पूर्व स्वीडिश पुलिस अधिकारी ने जो इस मामले की जांच कर रहा था. उन्होंने साथ ही यह भी दावा किया कि इस मामले में राजीव गांधी के खिलाफ कोई सबूत नहीं पाए गए थे.
एक बार फिर बोफोर्स का जिन्न बाहर आ चुका है और यह ऐसे समय में बाहर आया है जब सियासी गलियारों में चारो तरफ कांग्रेस विरोधी हवा चल रही है. लेकिन इस बार राजीव गांधी को बिलकुल पाक-साफ बताया गया है तो हो सकता है इस बार कांग्रेस को नुकसान की जगह फायदा ज्यादा हो.
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