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What is God Particle – गॉड पार्टिकल: आज खुलेगा ब्रह्मांड का रहस्य

God Particle

मनुष्य की सबसे बड़ी जिज्ञासा है कि धरती पर सृष्टि की रचना कैसे हुई? इस एक प्रश्न की खोज में इंसान सदियों से अपने दिमाग को उलझा रहा है. लेकिन आज इस सवाल का एक राज जल्द ही खुल जाएगा. उम्मीद की जा रही है कि ब्रह्मांड कैसे बना और कब बना यह राज आज खुल ही जाएगा.

जिनेवा के पास जमीन में कई फुट नीचे सर्न की प्रयोगशाला में हजारों वैज्ञानिक इस प्रश्न की तलाश में लगे थे. फ्रांस में और स्विट्जरलैंड की सीमा के पास जमीन के 300 फीट नीचे वैज्ञानिक वर्षो से प्रयोग कर रहे थे जहां वैज्ञानिकों की टीम “गॉड पार्टिकल” के रहस्य को सुलझाने के करीब जा पहुंची है. “गॉड पार्टिकल” का नाम हिग्स बोसॉन है.


What is God Particle: आखिर क्या है गॉड पार्टिकल

हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल विज्ञान की एक ऐसी अवधारणा है जिसे अभी तक प्रयोग के जरिए साबित नहीं किया जा सका है. अगर इसकी मौजदूगी के प्रमाण मिलते हैं तो ये पता लग सकेगा कि कणों में भार क्यों होता है. साथ ही ये भी पता चल सकेगा कि ब्रह्रांड की उत्‍पत्ति कैसे हुई होगी.

भार वो चीज है जो कोई चीज अपने अंदर रख सकता है. अगर कुछ नहीं होगा तो फिर किसी चीज के परमाणु उसके भीतर घूमते रहेंगे और जुड़ेंगे ही नहीं. इस सिद्धांत के अनुसार हर खाली जगह में एक फील्ड बना हुआ है जिसे हिग्स फील्ड का नाम दिया गया. इस फील्ड में कण होते हैं जिन्हें हिग्स बोसॉन कहा गया है.


Reality of Big Bang

वैज्ञानिक धारणा है कि हिग्स बोसॉन के कण 13.7 खरब साल पहले बिग बैंग यानि महाविस्फोट के दौरान पैदा हुए और इस महाधमाके की वजह से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया. एलएचसी मशीन (large hadron collider) के जरिए ठीक वैसा ही बिग बैंग करवाने की कोशिश की गई जो खरबों साल पहले हुआ था. इस महाप्रयोग के वक्त एलएचसी मशीन में कणों को तेज गति से फेंका गया ताकि वे आपस में टकरा सकें. शुरुआत में वैज्ञानिकों ने प्रोटान्स की टक्कर कराई लेकिन उन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिली. नवंबर, 2011 में वैज्ञानिकों ने प्रोटॉन्स की जगह कुछ आयन्स की टक्कर कराई. इस टक्कर के नतीजे हैरान करने वाले रहे. दिसंबर में ही वैज्ञानिकों ने एलान कर दिया कि वे गॉड पार्टिकल के बेहद करीब पहुंच चुके हैं.

अगर गॉड पार्टिकल का अस्तित्व सिद्ध हो गया तो भविष्य में ब्रह्मांड को लेकर होने वाले शोध आसान हो जाएंगे. अभी तक वैज्ञानिकों को केवल पांच फीसदी ही ब्रह्मांड की जानकारी है बाकी का हिस्सा डार्क एनर्जी या डार्क मैटर के नाम से जाना जाता है.


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