समाज का इससे कुरूप चेहरा शायद ही आपने पहले कभी देखा होगा. तालिबान या दूर-दराज किसी गांव में अगर किसी लड़की को कुछ लोग नंगा कर रहे होते तो शायद एक बार को आप कह सकते थे गलती वहां के समाज की है लेकिन जब एक मॉडर्न सिटी माने जाने वाले गुवाहाटी में एक लड़की को सरेआम कुछ भेड़िए नोचते हैं और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसकी लाइव रिकॉर्डिंग करता है तो लगता है शायद तालिबानी असर कुछ ज्यादा ही फैल गया है.
गुवाहाटी समेत पूरे भारत में इन दिनों उस कांड की गूंज बहुत ज्यादा सुनाई दे रही है जिसमें समाज में छुपे बैठे कुछ भेडियों ने एक लड़की की इज्जत को सरे-बाजार उतारने की कोशिश की और इस सब को रिकॉर्ड किया एक रिपोर्टर ने.
Guwahati case: टीआरपी के लिए था यह नाटक
माना जा रहा है कि जिस समय यह घोर अपराध हो रहा था उस समय वहां मौजूद “न्यूज लाइव” के रिपोर्टर ने भीड़ को उकसाया और लड़की के कपड़े फड़वाए. जब लड़की को भीड़ पीट रही थी और उसके कपड़े फाड़ कर उसे सरे राह अपमानित कर रही थी, तब पूरी घटना को रिपोर्टर कैमरे में कैद कर रहा था. जहां यह सब हो रहा था, वहां से पुलिस स्टेशन महज पांच-दस मिनट की दूरी पर है, लेकिन पुलिस को आने में पौना घंटा लग गया.
क्या है मीडिया की जिम्मेदारी
इस पूरे मामले में मीडिया कर्मियों की नैतिक जिम्मेदारी पर सवाल उठाए गए हैं. ऐसी घटनाओं में कोई रिपोर्टर क्या केवल घटना को कवर करता रहे या फिर कैमरा छोड़ कर खुद बचाव में उतर आए? जाहिर है, उसे दोनों काम करने होंगे. घटना को कवर करना भी जरूरी है ताकि दुनिया को, समाज को, सिस्टम को उसका असली चेहरा दिखा सके. जिम्मेदार नागरिक होने के नाते बचाव में कूदना भी जरूरी है. कम से कम फौरन पुलिस को खबर करना उसकी जिम्मेदारी है. गुवाहाटी मामले में यदि रिपोर्टर ने खुद इस पूरे घटनाक्रम को प्लान किया है, तो यह वाकई बेहद दुखद है और यह प्रेस-मीडिया नहीं बल्कि उस रिपोर्टर के व्यक्तित्व और चरित्र को कलंकित करता है.
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