देश में ऐसी परिस्थितियां बन चुकी हैं जहां आम जनता अपने आप को अकेला, असहाय और ठगा हुआ महसूस कर रही है, जिसे यह तक पता नहीं कि जिस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह आन्दोलन कर रही है वह कभी उसे मिलेगा भी या नहीं. पिछले 40 साल से देश की आम जनता की नजर एक ऐसे विधेयक पर पड़ी है जिसे यदि पास कर दिया जाए और उसे एक कानून का रूप दे दिया जाए तो शायद देश की आधी समस्या दूर हो सकती है. लोकपाल विधेयक एक ऐसा विधेयक है जिसके पास ना होने के कारण जनप्रतिनिधियों और जनता के बीच संपर्क की खाई चौड़ी होती जा रही है. यह खाई आज भी सौ फीसदी बरकरार है.
लोकपाल बिल को सफल बनाने के लिए पिछले कई सालों से सामाजिक कार्यकर्ताओं का संघर्ष जारी है लेकिन लोकपाल बिल पर संघर्ष और आंदोलन की बात की जाए तो वर्ष 2011 सफल साबित हुआ. जहां हजारों की संख्या में लोग इस आंदोलन से जुड़े, इसमें वह लोग भी शामिल थे जिन्हें यह तक नहीं पता था कि लोकपाल बिल में है क्या. तमाम तरह की मीडिया और जनता के सपोर्ट के बाद यह आन्दोलन तो सफल रहा लेकिन अंत में सरकार ने वही किया जिसके लिए वह जानी जाती है. उसने बिल तो पास नहीं किया उलटे आंदोलन करने वाली टीम अन्ना पर ही वार कर दिया.
लेकिन एक बार फिर कभी न हारने की तर्ज पर टीम अन्ना मैदान में कूद गई है. दिल्ली के जंतर मंतर पर 25 जुलाई मंगलवार से टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और गोपाल राय अनशन पर हैं. इस बार टीम अन्ना की जो मंशा है वह आन्दोलन को अंतिम अंजाम तक ले जाने की है. पिछले डेढ साल से सरकार के धोखों और ढकोसलों से वह पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है इसलिए इस बार टीम अन्ना लोकपाल पर कम फोकस करते हुए उन मंत्रियों पर ज्यादा हमले दागेगी जो लोकपाल कानून बनने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं.
अगर बात की जाए पिछले दो दिन से जारी इस आंदोलन की तो इस बार सरकार की बातों से बता चलता है कि वह किसी भी तरह से आंदोलन को हाइप देना नहीं चाहेगी और न ही उन सभी मुद्दों पर गौर फरमाएगी जिसे टीम अन्ना ने रखा है. कम से कम कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के बयान से तो यही लगता है. उन्होंने कहा था कि यदि ‘टीम अन्ना का हम पर भरोसा नहीं है तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र जाना चाहिए’. इस बार के आंदोलन में मीडिया का सपोर्ट मिलेगा इस पर भी आशंका है क्योंकि आंदोलन के पिछले सत्र में जो मीडिया एक क्षण भी अपने आप को भ्रष्टाचार विरोधी शक्तियों से दूर नहीं कर पाई इस बार उसमें कुछ कमी दिखाई दे रही है.
एक चीज और ध्यान देने वाली बात है कि पिछला जो आंदोलन हुआ था उसकी सफलता में सरकार के तीन बड़े घोटालों 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ और मुंबई आदर्श हाउस जैसे घोटालों का मुख्य योगदान है. जिसकी रूपरेखा सुरेश कलमाडी और ए. राजा जैसे नेताओं ने रखी है. अब देखने वाली बात यह होगी कि इस बार का आंदोलन पिछली बार की तरह सफल हो पाएगा या नहीं, क्या आगे जाकर जनता के बहुत बड़े वर्ग और मीडिया का सपोर्ट इस आंदोलन से जुड़ेगा.
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