Pakistani Hindus and Assam Violation
इस साल भारत ने अपना 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाया. आजादी के इस जश्न में भी शायद अधीन होने का भाव छुपा था. इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके से ऐन पहले देश में जगह-जगह दंगों की खबरें आईं. भारत में जहां हिंदू एक बड़ी संख्या में हैं वहीं कुछ तथाकथित अल्पसंख्यक लोगों ने इसकी एकता को भंग करने की कोशिश की है. असम दंगों में एक बार फिर यह चीज साफ हो गई कि भारत चाहे कितना भी धर्मनिरपेक्ष बने लेकिन सच तो यह है कि यहां धर्मनिरपेक्षता की आड़ में नेता सिर्फ वोट बैंक बनाने के ख्वाब देखते हैं.
Assam Violation: असम दंगों की हकीकत
असम दंगे भारत में पनपते अल्पसंख्यक प्रधान राज्यों की कहानी और दर्द बया करते हैं. असम के दंगों को देखकर साफ होता है कि भारत में कहीं ना कहीं राजनीति का घिनौना चेहरा इसकी समरसता और धर्मनिरपेक्षता को खराब कर रहा है. असम के दंगों का इलाज कुछ लोग गुजरात के दंगों को मानते हैं लेकिन खून का जवाब हमेशा खून ही तो नहीं होता.
असम के बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) क्षेत्रों में 20 जुलाई से हिंसा भड़की हुई है. इसमें 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. साढ़े चार लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं. इन दंगों के बाद हजारों परिवार शरणार्थी शिविरों में शरण लिए हुए हैं. इस हिंसा की आग में मुंबई तक झुलस चुका है.
आजादी के 66 साल होने के बाद भी भारत आज भी धर्मनिरपेक्ष नहीं बन पाया है. धर्मनिरपेक्षता पर हावी होते वोट बैंक को हम हमेशा महसूस करते हैं.
इन्होंने मनाई पहली आजादी
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के निर्मम हालात के बारे में सभी जानते हैं. जबरन धर्मपरिवर्तन करना, लड़कियों से जबरन शादी कर लेना, लूटपाट, पुलिस का सहयोग ना मिलना आदि ऐसे कई अत्याचार हैं जो भारतीय हिंदू पाकिस्तान में झेल रहे हैं. हाल ही में पाकिस्तान में हो रहे जुल्म से दुखी होकर पिछले साल सितंबर में दिल्ली आए हिंदू पाकिस्तानी परिवारों ने इस साल सही मायने में आजादी का जश्न मनाया. पाकिस्तान से भागकर आए शरणार्थी बताते हैं कि पाकिस्तान में हालात सही नहीं हैं. वहां कई तरह की बंदिशें हैं. खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को वहां किसी प्रकार की कोई सुरक्षा नहीं दी जाती.
एक तरफ जहां असम में कुछ बांग्लादेशी लोगों ने आकर यहां रहना शुरू किया है वहीं भारत में पाकिस्तानी हिन्दुओं ने आकर अपना घर कर लिया है लेकिन बस फर्क एक ही चीज का है जहां असम में अल्पसंख्यकों ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए हिंसा का रास्ता चुना तो वहीं पाकिस्तान से भागकर आए हिंदुओं ने अपना जीवन बसर करने के लिए आम जीवन का रास्ता चुना.
कुछ बौद्धिक समुदायों का मानना है कि आजादी के 66 साल बाद भी देश के अंदर फैली छद्म धर्मनिरपेक्षता को ऐसी घटनाओं ने सामने लाकर खड़ा कर दिया है. एक तरफ तो पाकिस्तान में जहां हिन्दुओं को तिरस्कार की निगाहों से देखा जाता है वहीं भारत में अल्पसंख्यकों को विशेष कोटा दिया जाता है, उन्हें कई तरह की सुविधाएं दी जाती हैं. इनका सवाल है कि आखिर क्यूं भारतीय नेता धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर पहले वोट बैंक की तरफ देखते हैं?
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