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यूपीए सरकार का महाघोटाला – उलटे कैग पर ही लगाया आरोप

cag report15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से यूपीए सरकार की उपलब्धियां गिनाईं तब ऐसा लगा कि सरकार को हर बार की तरह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपनी जिम्मेदारियों का पूरी तरह से एहसास है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस सरकार ने हर बार जनता को धोखा दिया है. इनके शब्दकोश में भ्रष्टाचार, कालाधन, घोटाला जैसे शब्दों का बोलबाला है तथा जिम्मेदारी और जनहित नामक शब्द की कोई जगह नहीं है.


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केंद्र की यूपीए सरकार पिछले 9 सालों में अगर किसी चीज के लिए प्रचलित हुई तो वह है ‘घोटाला’ खासकर इस सरकार की दूसरी पारी ने तो घोटाले के पिछले कई सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. संसद में शुक्रवार को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानि सीएजी ने कोयला, नागरिक विमानन और बिजली क्षेत्र से संबंधित तीन रिपोर्ट पेश किए जिसके अनुसार सरकार ने निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए 3.06 लाख करोड़ रुपये  की चपत लगाई.


कौड़ियों के दाम में कोयला

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की चुनिंदा निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने कोयला खानों का आवंटन कौड़ियों के भाव कर दिया. कोयला खानों को प्रतिस्पर्धी बोलियों की बजाय आवेदन के आधार पर देने से सरकार को 17.40 अरब टन कोयले पर 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.


कोयला ब्लॉक आवंटन पर कैग की शुक्रवार को संसद में पेश रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की 25 कंपनियों के नाम गिनाए गए हैं, जिन्हें सीधे नामांकन के आधार पर कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए. इनमें एस्सार पावर, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, टाटा पावर, भूषण स्टील और जिंदल स्टील एंड पावर का नाम शामिल है. कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिस्पर्धी बोलियों के आधार पर आवंटन की प्रक्रिया में देरी की वजह से कोयला ब्लॉक आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया निजी क्षेत्र की कंपनियों  के लिए फायदेमंद साबित हुई.


कैग ने 2004 से 2009 के कोयला ब्लाकों के आवंटन की जांच की है. वर्ष 2006 से 2009 तक कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था इसलिए विपक्षी पार्टी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग कर रही है.


रिलायंस पर क्यों महरबानी

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की शुक्रवार को संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि सासन बिजली परियोजना के लिए आवंटित कोयला खान से अतिरिक्त कोयला दूसरी परियोजनाओं के लिए उठाने की मंजूरी देकर रिलायंस पावर को फायदा पहुंचाया गया है. सासन परियोजना अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस पावर की है. लेकिन सासन बिजली परियोजना की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी आवंटित कोयला खान का अतिरिक्त कोयला उसकी दूसरी परियोजनाओं में इस्तेमाल करने की अनुमति देने से न केवल पूरी बोली प्रक्रिया दूषित हुई है बल्कि इसके परिणामस्वरूप रिलायंस पावर को 29,000 करोड़ रुपए से अधिक का लाभ भी हुआ. रिलायंस पावर लिमिटेड को सासन बिजली परियोजना वर्ष 2006 में मिली थी. कंपनी ने इसके लिए 1.196 रुपए प्रति यूनिट बिजली शुल्क की बोली लगाई थी. कंपनी को चितरंगी परियोजना का भी ठेका मिला. इसके लिए उसने 2.45 से 3.702 रुपए प्रति यूनिट की बोली लगाई. आज पूरी देश में कोयले की भारी कमी है जिसकी वजह से बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही.


हवाई अड्डे में घपला

संसद में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (डायल) के संबंध में पेश कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने निविदा शर्तों का उल्लंघन किया जिसकी वजह से डायल को 3415 करोड़ रुपए का भारी मुनाफा हुआ. जीएमआर इन्फ्रास्ट्रक्चर का डायल में 54 फीसद हिस्सा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि डायल को 100 रुपए वार्षिक पट्टे पर 60 साल के लिए जो जमीन मुहैया कराई गई है उससे कंपनी को एक लाख 63 हजार 557 करोड़ रुपए आय की उम्मीद है. कैग ने कहा है कि यह नोटिस में आया है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय और भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण ने कुछ मौकों पर लाभकर्ता के हित में सौदा दस्तावेज के प्रावधानों का उल्लंघन किया. कैग रिपोर्ट में पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल पर अंगुली उठाते हुए कहा गया है कि उन्होंने जीएमआर का पक्ष लिया जिससे कंपनी को 3400 करोड़ रुपए का बेजा फायदा हुआ.


नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की यह रिपोर्ट दिल्ली हवाई अड्डे का परिचालन करने वाले जीएमआर के प्रभुत्व वाले डायल को एयरपोर्ट इस्तेमाल के लिए यात्रियों पर विकास शुल्क लगाए जाने पर थी. लेकिन नागरिक उड्डयन मंत्रालय की मेहरबानी ही थी जिससे डायल को 3415 करोड़ रुपए का फायदा हुआ.


कैग की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार को कोई अफसोस न हीं है बल्कि उलटे सरकार ने तो कैग पर अपने दायरे में रहने का आरोप ही लगा दिया. उन्होंने पूरी तरह से कैग की रिपोर्ट को निराधार बताया. इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि किस तरह से सरकार ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए हर तरह की नीति को ताक पर रखा. कैग की यह रिपोर्ट पहली नहीं है जिसमें उन्होंने सरकार के कारनामों का खुलासा किया हो. इससे पहले 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी टेलिकॉम कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने देश को 1.76 लाख करोड़ रुपये की चपत लगाई.


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