इसे देश का लचर कानून ही कहेंगे जहां पर एक व्यक्ति पूरे विश्वास के साथ इस तरह से नरंसहार करता है जैसे वह इंसान नहीं दरिंदा हो और जिसका लक्ष्य मानव जाति का समूल नाश करना हो. ऐसे में जब वह व्यक्ति पकड़ा जाता है तो उसके साथ इस तरह से व्यवहार किया जाता जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
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26 नवंबर, 2008 को कई आतंकवादियों ने मुंबई में तांडव मचाया था. उस दौरान गिरफ्तार हुए अभियुक्त अजमल कसाब की सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सज़ा बरकरार रखी है. कसाब को इससे पहले बंबई हाई कोर्ट ने भी फांसी की सज़ा सुनाई थी लेकिन कसाब ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
जस्टिस आफताब आलम और सीके प्रसाद की खंडपीठ के अनुसार, ” कसाब के बारे में फैसला करने में कोई दुर्भावना नहीं है. इस शख्स ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है. इसलिए ऐसे शख्स को मृत्युदंड की सज़ा बरकरार रखने में कोई समस्या नहीं है. कोर्ट का कहना था कि कसाब को मृत्युदंड देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. कसाब की दलील थी कि उसकी कम उम्र को देखते हुए उसे फांसी की सज़ा न दी जाए लेकिन अभियोजन पक्ष ने लगातार कहा कि कसाब के जुर्म की गंभीरता को देखते हुए उसे फांसी की सजा ही दी जानी चाहिए.
अब जो लोग सोच रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जघन्य अपराध करने वाले इस आतंकवादी को फांसी मिलेगी तो वह बिलकुल गलत सोच रहे हैं. भारत का लचर कानून और राजनैतिक वोट बैंक उसके फांसी में अड़ंगा जरूर डालेगा. अफजल की तरह अजमल कसाब के पास भी एक ऐसा अस्त्र है जिसकी सहायता लेकर वह अपने फंसी को टाल सकता है. जी हां, उसके पास अभी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करके राष्ट्रपति से दया की अपील करने का विकल्प है. जिसका मतलब है इसका मामला भी अफजल गुरु की तरह अधर में अटक जाएगा फिर राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल इसका भी वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करेंगे.
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