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संसद का नया टशन, हंगामे में रहना है मगन

The Parliament of India

देश की संसद का काम होता है देश की समस्याओं को मिलकर सुलझाना और जरूरी कानून आदि बनाना. लेकिन लगता है अब संसद का मतलब हंगामा, वॉक आउट और बंद हो गया है. पिछले कई सत्रों से संसद में जो बात एक समान देखी जा रही है उसमें से एक है सदन की कार्यवाही का ना होना.

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Parliament House of India
Parliament House of India

Hours of Sitting – Parliament of India

पिछले साल संसद की कार्यवाही लोकपाल बिल की वजह से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई. सरकार की टालमटोल की नीति और विपक्ष के हंगामे की वजह से पिछले साल संसद की कार्यवाही 73दिन चली और 73 दिनों में से अधिकतर समय तो हंगामे की बलि चढ़ गया. इस दौरान जहां कुल 54 विधेयकों को कानून में परिवर्तित करने की योजना थी, उनमें से केवल 28 पारित किए गए. पिछले साल जब संसद की कार्यवाही खत्म हुई, तब 97 विधेयक लंबित थे.


Parliament’s working: संसद की कार्यवाही

इस साल भी जब मानसून सत्र की शुरुआत हुई तो कुछ आशा थी कि शायद कुछ बदले पर ऐसा हुआ नहीं. मानसून ने जहां एक ओर भारत के कई राज्यों को बाढ़ के संकट में डुबा दिया तो वहीं मानसून सत्र सरकार के लिए मनहूस साबित हुआ. मानसून सत्र की शुरुआत में ही कोयला घोटाला सामने आने से सरकार की मुसीबतें बढ़ गईं. विपक्ष सिर्फ एक ही मांग पर अड़ा है कि प्रधानमंत्री अपना इस्तीफा दे दें. विपक्ष किसी भी शर्त पर हंगामा बंद करने के मूड में ही नहीं. ऐसा प्रतीत होता है जैसे भाजपा और अन्य विपक्षी पार्टियों को लगता है कि मनमोहन सिंह के इस्तीफे से देश को हुआ नुकसान वापस मिल जाएगा.


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इन सबके बीच सरकार की मंशा भी लगातार सवालों के घेरे में है. सरकार घोटालों पर सफाई देने की जगह “चुप्पी” मारकर बैठी है. सरकार के रवैये और भाजपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियों के हंगामे का असली असर पड रहा है उन महत्वपूर्ण विधेयकों और प्रस्तावों पर जिन पर इस देश की नींव टिकी है.


lok-sabhaवर्तमान मानसून सत्र में करीब 29 विधेयक पेश किए जाने थे जिन्हें पारित कर कानून बनाया जाना था. जिनमें केमिकल वेपन संशोधन विधेयक-2012 और एम्स संशोधन विधेयक-2012, भ्रष्टाचार-विरोधी कानून, कार्यालयों में महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार से लड़ने वाला कानून, व्हिसल ब्लोअर यानि किसी गलत काम के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सुरक्षा प्रदान करने वाला कानून, उच्च शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने वाला कानून शामिल हैं.


विपक्ष के तेवर के बाद मानसून सत्र पर लटकी तलवार को देखते हुए सरकार अब शोर-शराबे में ही विधेयक पारित करवाने के मूड में है. लेकिन बिना बातचीत और विचार-विमर्श के कोई भी कानून या प्रस्ताव पारित करवा लेना लोकतंत्र के लिए सही नहीं माना जा सकता है.


सदन की कार्यवाही को इस तरह से बाधित करने में विपक्ष और सरकार दोनों की गलती मानी जा सकती है. अगर सरकार और विपक्ष कोई बीच का रास्ता निकाल कर सदन की कार्यवाही को आगे जारी रखते हैं तो इसमें देश का ही फायदा होगा.


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