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राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद का रास्ता बेहद कठिन है !!

rahul gandhiभारत की वर्तमान राजनीति संक्रमण के दौर से गुजर रही है. देश में राजनैतिक क्षमता और इच्छाशक्ति का अभाव दिख रहा है. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी अपने भविष्य के राजनैतिक नेतृत्व को लेकर उलझी हुई नजर आ रही है वहीं कांगेस का हाल भी कमोबेश कुछ ऐसा ही है. घोटालों के जाल से चारो तरफ से घिरी कांग्रेस की अपने देश में किरकिरी तो हो ही रही है विदेशों में भी हाल कुछ खास नहीं है.


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कुछ दिन पहले अमरीका की सबसे लोकप्रिय पत्रिका ‘टाइम्स’ और समाचार पत्रिका ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासन पद्धति पर आवाज उठाते हुए काफी आलोचना की और मनमोहन सिंह की सरकार को भ्रष्ट सरकार का दर्जा दिया. इस बार अमरीका की पत्रिका नहीं बल्कि लंदन में छपने वाली प्रतिष्ठित पत्रिका “इकोनॉमिस्ट” ने आवाज उठाई है और शिकार मनमोहन सिंह नहीं बल्कि राहुल गांधी हैं.

‘राहुल प्रॉब्लम’ यानी राहुल गांधी की समस्याएं शीर्षक के लेख में कांग्रेस महासचिव के व्यक्तित्व, राजनीति, उनकी सोच, और कुछ दूसरे पहलुओं का विश्लेषण किया गया है. चार पन्नों के लेख में कहा गया है राहुल गांधी बड़ी जिम्मेदारी से हर समय कतराते रहे हैं और जिस चीज की उन्होंने जिम्मेदारी ली जैसे युवा शाखा के पुनर्गठन और क्षेत्रीय चुनावों पर ध्यान केंद्रित करना, उसमें वह असफल साबित हुए.


पत्रिका में बताया गया है कि अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के बाद भी राहुल गांधी एक सफल राजनेता बनने में कामयाब नहीं हुए. उनकी छवि एक शर्मीले राजनेता की तरह है जो पत्रकारों, लेखकों, जीवनीकारों, संभावित साझेदारों और राजनीतिक विरोधियों से बात करने में झिझकते हैं. एक राजनेता की पहचान तभी बनती है जब संसद जैसे बड़े मंच पर अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अपने स्वर को बुलंद करे लेकिन राहुल अपने शर्मीले व्यवहार की वजह से संसद में बोलना तो दूर उनकी उपस्थिति भी कम रही है.


इकोनॉमिस्ट ने राहुल गांधी पर हाल में लिखी गई आरथी रामचंद्रन की किताब (डिकोडिंग राहुल गांधी) का ज़िक्र किया है. इस किताब में राहुल गांधी के निजी और सार्वजनिक ज़िंदगी से जुड़े कई पहलुओं पर रोशनी डाली गई है. लेकिन आरथी को किताब लिखने में ये दिक्कत पेश आई कि राहुल गांधी के बारे में काफी जाकारियां आम नहीं हैं और वो खुद बहुत मामूली से सवालों जैसे विदेश में शिक्षा या फिर लंदन में उनकी नौकरी के बारे में कुछ बताने को तैयार नहीं हैं. लेख के मुताबिक आरथी रामचंद्रन ने अपनी किताब में उत्तर प्रदेश चुनावों की भी समीक्षा की है जिसे कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा था लेकिन वहां भी वे विफल साबित हुए. उन्हें अपने राजनैतिक कॅरियर में अपने आप को साबित करने के कई मौके मिले लेकिन वह इन मौकों को भुना नहीं पाए.


पत्रिका ने राहुल गांधी की अक्षमता पर जो सवाल उठाए हैं वह भले ही कांग्रेस के लिए स्वीकार्य न हो लेकिन सच्चाई इसके काफी निकट है. जिस तरह से राहुल गांधी को बना-बनाया राजनैतिक मंच मिला है उस मंच पर वे टिकते दिखाई नहीं दे रहे हैं.


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Please Post your Comment:क्या आपको लगता है कि राहुल गांधी भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालने में सक्षम हैं?


राहुल गांधी.


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