लाखों उम्मीदों को लिए भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ शुरू हुआ जनलोकपाल आंदोनल आज अपनी अस्तित्व को लेकर लड़ाई लड़ रहा है. आन्दोलन का मुख्य चेहरा रहे अन्ना हजारे को अब एहसास हो रहा है कि जिस आंदोलन में लोगों के तन-मन जुड़े हुए थे दरअसल वह किसी की राजनैतिक महत्वाकांक्षा थी. इस बात की पुष्टि लगातार अन्ना हजारे अपने ब्लॉग और बयानों के माध्यम से करते रहे हैं. कभी आंदोलन के कर्ताधर्ता रहे अरविंद केजरीवाल पर हमला बोलते हुए अन्ना हजारे ने कहा है कि “जनलोकपाल आंदोलन पार्टी बनाने के निर्णय से विभाजित हुआ है.”
असल में भारत मैच में कहीं था ही नहीं
इससे पहले भी अन्ना हजारे ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यह साफ किया कि किस तरह से अरविंद केजरीवाल और उनसे जुड़े लोगों ने उनके कंधे पर बंदूक रखकर उनका इस्तेमाल किया था. वह तो अन्ना का आंदोलन में मुख्य चेहरा होने की वजह से लोगों को यह संदेह नहीं हुआ, नहीं तो आंदोलन की शुरुआत में ही (अप्रैल 2011) यह पता चल जाता कि जिस आंदोलन में लोगों की भावना जुड़ी है उस आंदोलन के पीछे राजनीतिक पार्टी के ताने-बाने बुने जा रहे हैं.
जिस तरह से पिछले कुछ महीनों से अरविंद केजरीवाल ने अपना चाल चरित्र दिखाया उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आंदोलन तो बहाना था असल मुद्दा तो उनका राजनीति में आना था. हिसार में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करके टीम अन्ना के कई सदस्यों को नाराज करना, अपना निर्णय टीम पर थोपना और इसी साल अगस्त के महीने में अनशन के बहाने राजनैतिक इच्छा जाहिर करना यह कुछ ऐसी बातें हैं जो अरविंद केजरीवाल की राजनैतिक मंशा को साफ करता है.
हाल के दिनों में तो राष्ट्रीय मुद्दों पर अरविंद केजरीवाल की राजनैतिक मंशा और अधिक मुखर हो कर सामने आई है जब वह कुडनकुलम परमाणु विद्युत परियोजना और कोयला घोटाले पर राजनीति करते नजर आए. वह एक प्रखर नेता की तरह राजनैतिक दलों का विरोध करते हैं, किसी दल के खास नेता पर कटाक्ष करते हैं और अपने आप को एक विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश करने की कोशिश करते हैं.
अन्ना हजारे अगस्त (2011) के महीने में हजारों की भीड़ को देखकर यह समझ रहे थे कि उनका यह आंदोलन सफलता का कीर्तिमान रचेगा और सरकार को अपनी छवि को बचाने के लिए मजबूरन जनलोकपाल बिल पास करना पड़ेगा. लेकिन बिल तो पास नहीं हुआ उलटे सरकार को मौका मिल गया अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों पर छींटाकशी करने का. इससे अरविंद केजरीवाल पर सवाल तो उठते ही हैं. सवाल अन्ना हजारे पर भी उठते हैं कि जिस तरह से वह आजकल अरविंद केजरीवाल के इरादे पर आवाज उठा रहे हैं और बिखरी हुई जनता को एक जगह करने की कोशिश कर रहे हैं यह काम उन्होंने आन्दोलन की शुरुआत में क्यों नहीं किया.
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