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तो इस वजह से बढ़ा यशवंत और गडकरी के बीच टकराव

yashwant sinhaदेश की जनता को सत्ता का विकल्प देने वाली भारतीय जनता पार्टी आज भारी आंतरिक कलह और गुटबाजी के दौर से गुजर रही है. पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेता अब खुलेआम एक-दूसरे पर छींटाकशी कर रहे हैं. एक नए मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ आवाज उठाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा के खिलाफ कथित तौर पर भाजपा द्वारा दिल्ली में पोस्टर लगाया गया है. लंबे-चौड़े इस पोस्टर में यशवंत सिन्हा को घोटालों का सरदार बताया गया है. इस पोस्टर में यशवंत सिन्हा को याद दिलाते हुए पूछा गया है कि क्या वह अपना काला इतिहास भूल गए हैं. पोस्टर में यशवंत सिन्हा को पीठ में छुरा घोपने और खाने-पीने वाला नेता भी बताया गया है.

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इसके जवाब में यशवंत सिन्हा ने कहा है कि जिसने भी पोस्टर लगाया है किंतु वह अज्ञात लोगों द्वारा लगाये पोस्टर पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकते. पार्टी की तरफ से नेता शाहनवाज हुसैन ने इसकी कड़ी निंदा की. वैसे जानकारों की मानें तो यह करतूत बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और उनसे जुड़े लोगों की है. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भाजपा सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस्तीफे की मांग की थी. यह मांग यशवंत सिन्हा के अलावा पार्टी के अन्य दूसरे बड़े नेताओं ने भी की जिसमें जसवंत सिंह, शत्रुघ्न सिन्हा और राम जेठमलानी शमिल थे. ये सभी नेता गडकरी को दोबारा पार्टी का अध्यक्ष बनाने के पक्ष में नहीं थे.


गडकरी के खिलाफ इस्तीफे की मांग को लेकर जो हवा चल रही है इसकी मुख्य वजह स्वयं नितिन गड़करी ही हैं. बीते कुछ महीनों से जिस तरह से गडकरी भ्रष्टाचार और घोटालों में अपने आप को घिरे हुए पा रहे हैं उससे पार्टी की छवि को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है. पार्टी कार्यकर्ता बिखरे हुए दिखाई दे रहे हैं. पार्टी दो हिस्से में बंटी हुई दिखाई दे रही है. एक पक्ष नितिन गडकरी का समर्थन कर रहा है तो दूसरा पक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है. इस वर्ग के लोगों को लगता है कि यदि गडकरी पद पर बने रहते हैं तो हम सत्ता पार्टी के खिलाफ उग्र रवैया नहीं अपना पाएंगे बल्कि हर समय बचाव की स्थिति में रहेंगे.


वैसे यह पहला मामला नहीं है जब नितिन गडकरी और यशवंत सिन्हा पार्टी के लिए अंतर कलह की वजह बने हैं. कुछ महीने पहले जब झारखंड में राज्यसभा के लिए चुनाव होना था तब भी एनआरआई व्यवसायी अंशुमान मिश्रा की उम्मीदवारी के मुद्दे पर बीजेपी के दिग्गज बंटे हुए दिखाई दिए. यशवंत सिन्हा, लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता नहीं चाहते थे कि अंशुमान मिश्रा राज्यसभा में पहुंचे वहीं पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह खुलकर अंशुमान का साथ दे रहे थे. यशवंत सिन्हा ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर बीजेपी ने राज्यसभा में अंशुमान मिश्रा का समर्थन किया तो मैं पार्टी छोड़ दूंगा.


आज जहां हम कांग्रेस को भ्रष्टाचार और अन्य कई मुद्दों पर भारी संकट में घिरे हुए पाते हैं वहीं भाजपा भी उसी राह पर चल रही है. भ्रष्टाचार और आंतरिक कलह की वजह से ही आज भाजपा एफडीआई पर ममता बनर्जी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर पाई. क्योंकि इन्हें पता है कि अगर सरकार गिर गई और आम चुनाव हुए तो भाजपा ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह आम चुनाव को जीत में तब्दील कर ले. बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन भले ही इसे हलके में लेकर इस घटना की केवल निंदा करके छुटकारा पाना चाह रहे हों लेकिन सच तो यह है भाजपा के लिए यह समय संकट की घड़ी है.


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