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पोप बेनेडिक्ट के जीवन का सफर

कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु वेटिकन के पोप बेनेडिक्ट 16वें ने 28 फरवरी, 2013 को अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि बढ़ती उम्र के कारण वह ये फैसला ले रहे हैं. आधुनिक विश्व में यह पहली बार है जब किसी पोप ने इस तरह की घोषणा की है. इससे पहले पोप सीलेस्टीन पंचम ने आठ सदियों पहले पांच महीनों तक ईसाई धर्मगुरु रहने के बाद वर्ष 1294 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.


85 वर्षीय पोप बेनेडिक्ट 2005 में पोप जॉन पॉल द्वितीय के निधन के बाद पोप बने थे. तब उनकी उम्र 78 वर्ष थी. अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए पोप बेनेडिक्ट ने कहा कि “अपने स्वास्थ्य की गंभीरता को देखते हुए इस पद से इस्तीफा दे रहा हूं.” पोप बेनेडिक्ट द्वारा लिए गए इस अचानक फैसले का पूरी दुनिया ने सम्मान किया है. पोप के इस निर्णय के बाद मार्च में नए पोप के चुनाव होने की संभावना है.


पोप बेनेडिक्ट (जोसेफ एलॉसियस राट्जिंगर) का जन्म 16 अप्रैल, 1927 को जर्मनी के बवेरिया राज्य में एक किसान परिवार में हुआ था, हालांकि उनके पिता एक पुलिसकर्मी थे. वह अपने माता-पिता के तीसरे बच्चे थे. 14 साल की उम्र में 1941 में जोसेफ एलॉसियस राट्जिंगर हिटलर यूथ में शामिल हो गए जो उस वक्त सभी युवाओं के लिए अनिवार्य था. दूसरे विश्व युद्ध के कारण उनकी पढ़ाई में बाधा आई.


बाद में 1959 से वो बॉन विश्वविद्याल में प्रोफेसर बन गए. उनका पहला साहित्य ‘द गॉड ऑफ द फेथ एंड गॉड ऑफ फिलॉसफी’ थी. 1966 में वे धर्मशास्त्र पढ़ाने ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय चले गए. उन्होंने जर्मनी के कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवा दी.  वह 1976-1977 में रिजेंसबर्ग विश्वविद्यालय, में वाइस प्रेजिडेंट भी रहे. 1977 में पोप पॉल छठे ने उन्हें म्यूनिख का कार्डिनल नियुक्त किया.


पोप बेनेडिक्ट कई भाषाएं बोल सकते हैं और मोत्सार्ट और बेठोफेन के रचे संगीत के शौकीन हैं. पोप बेनेडिक्ट सोहलवें की छवि रुढ़िवादी धर्मशास्त्री की रही है जो समलैंगिंकता, महिलाओं के पादरी बनने और गर्भनिरोधन जैसे विषयों पर कोई समझौता नहीं करना चाहता है. लेकिन उन्होंने मानवाधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और गरीबी व अन्याय से सुरक्षा की बात की.


पोप बेनेडिक्ट को कई तरह की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. उनके कार्यकाल में पादरियों द्वारा यौन उत्पीडन किए जाने के कथित मामले ने वेटिकन चर्च की खासी किरकिरी की थी. इसके अलावा वेटिकन में भ्रष्टाचार के आरोपों समेत कई और भी ऐसे मामले हुए जिनके कारण चर्च को अंदरूनी और बाहरी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा.


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