इस समय देश में बजट का माहौल है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 2013-14 का आम बजट संसद में पेश कर दिया है. बजट से होने वाले प्रभाव को लेकर हर कोई इसके नफा-नुकसान की चर्चा कर रहा है. इस बीच खबर आ रही है कि त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Elections in Hindi) में जीत उन्हीं दलों की हुई है जो सत्ता पर काबिज थे. अभी तक प्राप्त रुझानों के मुताबिक त्रिपुरा में सीपीआई-एम एक बार फिर सत्ता में वापसी तय कर चुका है, जबकि मेघालय में कांग्रेस और नागालैंड में नगा पीपल्स फ्रंट भी जीत के करीब है.
त्रिपुरा
त्रिपुरा में वाममोर्चे की सरकार 20 साल पुरानी सत्ता बचाने में काम हो गई है. 60 विधानसभा सीटों पर डाले गए वोट में सीपीआई-एम ने लगभग दो-तिहाई सोटों पर कब्जा कर लिया है जबकि कांग्रेस 8 से 10 सीटो के बीच झूल रही है. पिछले विधानसभा चुनावों में माणिक सरकार के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने कुल 60 सीटों में से 49 जीती थीं. 1993 से लगातार लेफ्ट की सरकार त्रिपुरा में काबिज है. सीपीआई-एम के प्रवक्ता गौतम दास ने कहा है कि यह जीत एक अच्छे शासन प्रणाली का नतीजा है.
मेघालय
मेघालय में भी जनता ने अगले पांच सालों के वर्तमान सरकार पर ही विश्वास जताया है. राज्य की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर ही भरोसा जताया है. 60 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 17 सीटें जीत ली हैं जबकि 21 सीटों पर पार्टी बढ़त बनाए हुए है. यहां पर अभी तक की तस्वीर से यही लगता है कि कांग्रेस एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब रहेगी. लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष पीए संगमा की नवगठित नेशनल पीपुल्स पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई है. वह महज एक सीट जीत पाई है और एक पर आगे है.
Budget 2013-14- क्या सस्ता क्या महंगा
नागालैंड
नागालैंड में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम से यह तस्वीर साफ हो रही है कि सत्तारूढ़ नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) फिर सरकार बनाएगी. उसने 60-सदस्यीय विधानसभा में 26 सीटें जीत ली हैं और 10 पर आगे चल रही है. कांग्रेस ने महज चार सीटों पर दर्ज की है और तीन पर आगे चल रही है. इसके अलावा एनसीपी ने चार सीटें जीती हैं. जेडीयू ने भी एक सीट जीत ली है. नगालैंड में बीजेपी ने अपना खाता खोल लिया है. पी पाइवांग कोनयाक के रूप में पार्टी को एक सीट मिली है.
तीन राज्यों के चुनाव परिणाम से यह साफ हो गया कि प्रदेश की जनता सत्ता परिवर्तन में ज्यादा विश्वास नहीं करती. इसलिए जो राजनीतिक पार्टी यह उम्मीद लगाए बैठी थी कि पूर्वोत्तर में सत्ता परिवर्तन करके लोकसभा चुनाव में इसका फायदा उठाएगी उसके लिए यह चुनाव परिणाम बुरी खबर हैं.
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