2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब अखिलेश यादव ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर डीपी यादव जैसे तमाम बाहुबली नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने से साफ इनकार कर दिया था तब यह उम्मीद जगी थी कि उत्तर प्रदेश में अब गुंडाराज नहीं बल्कि रामराज की शुरुआत होगी. लेकिन इस उम्मीद की अखिलेश यादव की नई सरकार के एक-दो महीने बाद उस समय मिट्टी पलीद हो गई जब राज्य में जगह-जगह हिंसा, बलात्कार, हत्या और डकैती जैसी वारदातें होने लगीं.
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अभी हाल ही में हुई उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के हथिगवां इलाके में पुलिस उपाधीक्षक डीएसपी जियाउल हक की हत्या इस बात का सबूत है कि राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो चुकी है. लगातार हो रहे घटनाक्रमों ने न केवल प्रदेश में गुंडाराज की वापसी को और पुख्ता किया है बल्कि अखिलेश के सुशासन के सारे चुनावी वादों को भी धता बता दिया है.
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अब सवाल यह उठता है कि क्या समाजवादी पार्टी को सत्ता देकर जनता ने गलती की है. 2012 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव सपा की तरफ से मुख्य चेहरा थे. उत्तर प्रदेश की जनता भी विलायत से पढ़ कर आए अखिलेश से हजारों उम्मीदें लगाए बैठी थी कि यह राज्य में बदलाव लेकर आएंगे लेकिन उन्होंने वही नीति अपनाई जो उनके पूर्ववर्ती सरकारों ने अपनाई थी.
अगर अखिलेश के पिछले दस महीनों के शासन पर नजर डालें तो राज्य में इस बीच कई सांप्रदायिक दंगे देख चुका है, डकैतों के पुराने गिरोह फिर से अपना सर उठा रहे हैं, लगातार हो रहे बलात्कार या शारीरिक उत्पीड़न की खबरों से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई है. राज्य में हो रही लगातार ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि सूबे का नेतृत्व प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में नहीं है. बिगड़ती कानून-व्यवस्था अखिलेश यादव की अयोग्यता दर्शाती है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं उस पर पानी फिर सकता है.
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