इस समय राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि केंद्र की यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार अपनी सत्ता बचाने के लिए सहयोगी दलों के आगे मजबूर है. क्षेत्रीय दल किसी वजह से नाराज न हों इसके लिए उनकी हर मांगों पर गौर फरमाया जा रहा है. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो बीच में गच्चा देने की धमकी दी जाती है.
इस तरह से सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पूरी तरह से हताश और मजबूर हो चुकी है. लेकिन क्या वास्तविक स्थिति यही है, जानकार ऐसा नही मानते. उनके अनुसार अगर आज सरकार को अपनी सत्ता बचाने के लिए क्षेत्रीय दलों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है तो वह ऐसा करके केवल इन दलों को एक मौका दे रही है. अगर यह क्षेत्रीय दल अपनी मांगों पर अड़े रहे और अपनी हठधर्मिता का परिचय देते रहे है तो सरकार को मजबूर होकर अपने ही तरीके से इन पर कार्यवाही करनी पड़ेगी. जैसा कि इस समय सरकार ने डीएमके के नेता करुणानिधि के परिवार पर सीबीआई द्वारा शिकंजा कसना शुरू कर दिया है.
खबर है कि सीबीआई ने एम करुणानिधि की अगुवाई वाली डीएमके पार्टी के यूपीए-टू सरकार से समर्थन वापस लेने के महज दो दिन के अंदर ही करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन के खिलाफ विदेशी कारों के आयात पर ड्यूटी न चुकाने के मामले में चेन्नई स्थित आवास पर छापेमारी की. माना यह जा रहा है कि यह कार्यवाही राजनीतिक प्रतिशोध के तहत की गई है. डीएमके नेता समेत पूरे विपक्ष ने छापे की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं. उधर खबर यह भी आ रही है कि स्टालिन के घर पर छापेमारी करने वाली सीबीआई टीम को वापस बुला लिया गया है.
एक ही दिन में तेजी से घटे इस घटनाक्रम से अंदाजा लगाया जा सकता है. स्टालिन के घर सीबीआई का छापा केंद्र सरकार द्वारा फेंका गया एक ऐसा शिगूफा था जो स्थिति को पूरी तरह से पलट सकता है. हुआ भी ऐसा ही. डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने साफ किया है कि उनकी पार्टी यूपीए सरकार से समर्थन वापस नहीं लेगी. गौरतलब है कि श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर डीएमके ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और पार्टी के सभी केंद्रीय मंत्री इस्तीफा भी दे चुके हैं.
इस तरह से केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार ने सीबीआई के डंडे की चोट से उस क्षेत्रीय दल को अपने साथ जोड़ लिया जो कुछ समय पहले श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दों पर राजनीति कर रहा था और सरकार पर अपनी मांगों को लेकर दबाव डाल रहा था. ऐसा नहीं है इस घटनाक्रम का असर केवल डीएमके पर पड़ा. समाजवादी पार्टी पर भी सीबीआई की गाज गिर सकती थी जो अब तक समर्थन के मुद्दे पर फुदक रही थी इसलिए आशंका जाहिर की जा रही है कि पार्टी ने माहौल को देखते हुए केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के विवादित बयान को लेकर नरम रुख अपना लिया है.
इस तरह से पिछले कुछ दिनों से सरकार और क्षेत्रीय दलों के बीच जो हंगामा चल रहा था अब कहा जा सकता है कि सीबीआई के डंडे के भय से काफी हद तक शांत हो गया है.
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