केंद्र की यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार ने एक बार फिर वही काम किया है जिसके लिए वह जानी जाती है. सरकार को पता है कि किस तरह से देश की संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं को अपने पाले में करके उनके निर्णय को मन मुताबिक मोड़ा जाए. केंद्र सरकार के लिए जरूरी हथियार के तौर पर काम कर रही सीबीआई के बाद जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) पर भी आरोप लग रहे हैं कि उसने अपनी जांच में पारदर्शिता नहीं बरती.
Read: आईपीएल में हैट्रिक का इतिहास
गौरतलब है कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन दे दी है और कहा है कि प्रधानमंत्री को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ने ‘गुमराह’ किया था. साथ ही जेपीसी ने कहा कि राजा ने जो आश्वासन दिए वह झूठे साबित हुए.
जेपीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले आओ, पहले पाओ की प्रक्रिया महज दिखावा थी और मौजूदा नीति की अवहेलना की गई. जेपीसी इस निष्कर्ष पर भी पहुंची कि दूरसंचार विभाग द्वारा तय प्रक्रिया के बारे में पीएम को गुमराह किया गया. साथ ही उन्हें भेजे पत्रों में राजा ने पारदर्शिता के जो आश्वासन दिए थे, वे मिथ्या साबित हुए. रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय के टेलीकॉम मंत्री ए. राजा ने नीति में बदलाव की जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उस वक्त के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को नहीं दी थी और यूएएस लाइसेंसों को जारी करने में दूरसंचार विभाग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया के संबंध में प्रधानमंत्री को गुमराह किया गया.
इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन सालिसिटर जनरल जीई वाहनवति द्वारा 7 जनवरी, 2008 के प्रेस नोट को देखे जाने के बाद राजा ने उससे छेड़छाड़ की थी.
जेपीसी ने न केवल इन दोनों को क्लीन चिट दिया बल्कि रिपोर्ट के मसौदे में कैग के 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के अनुमान को खारिज कर दिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि नुकसान का यह आंकड़ा सही अनुमान पर आधारित नहीं है. गौरतलब है कि 2008 में 2-जी स्पैक्ट्रम की नीलामी को लेकर कैग द्वारा 1.76 लाख करोड़ रुपये के कथित नुकसान की रिपोर्ट के बाद विपक्ष ने काफी बवाल किया था और उसके बाद संसद ने जेपीसी का गठन कर इस मामले की जांच का आदेश दिया था.
Read: भगोड़े बने जनरल परवेज मुशर्रफ
इसका मतलब यह हुआ कि जेपीसी ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले से दूर करके सारा का सारा ठीकरा उस समय के टेलीकॉम मंत्री ए राजा और बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए पर मढ़ दिया है. वैसे भी तो यह स्वाभाविक था क्योंकि जिस जेपीसी ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को क्लीन चिट दी है उसके अध्यक्ष पीसी चाको एक कांग्रेसी नेता हैं. अब जहां जेपीसी का अध्यक्ष ही एक कांग्रेसी है तो क्या रिपोर्ट और क्या क्लीन चिट सब पर कहीं न कहीं पारदर्शिता की कमी दिखाई देती है.
याद रहे कि कुछ दिनों पहले ही बीजेपी ने जेपीसी के चैयरमेन पीसी चाको की यह कहकर आलोचना की थी कि वे प्रधानमंत्री को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति की पूरी कार्यवाही ‘विवादास्पद’ है.
फिलहाल तो जेपीसी की इस क्लीन चिट की पूरी आलोचना की जा रही है और कमेटी के अध्यक्ष पीसी चाको पर कई तरह के सवाल दागे जा रहे हैं. बीजेपी और लेफ्ट ने इसके खिलाफ असहमति प्रस्ताव लाने का फैसला किया है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को 2जी मामले में पूरी तरह से क्लीन चिट मिल गई है. वैसे भी सरकार को इस रिपोर्ट को सदन में पास करवाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी होगी. क्योंकि जेपीसी में अध्यक्ष को मिलाकर 30 सदस्य होते हैं, जिसमें 20 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं. अगर जेपीसी के इस रिपोर्ट पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समर्थन मिलता है तो सरकार के साथ कमेटी के 14 सदस्य होंगे जबकि सरकार के खिलाफ 16 सदस्य होंगे.
Read Comments