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एंटी रेप लॉ पर सुझाव पेश करने वाले जस्टिस जे.एस. वर्मा का निधन

भारत के 27वें मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस जगदीश शरन वर्मा, जिन्होंने महिलाओं के प्रति बढ़ रहे यौन अपराधों को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा कानून को और सख्त बनाने के लिए उपयोगी सुझाव देकर एंटी रेप लॉ को एक कठोर कानून का रूप देने और महिलाओं को बेहतर सुरक्षा मुहैया करवाने में अपना सहयोग दिया था, का कल रात गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. डॉक्टरों का कहना है कि शरीर के विभिन्न अंगों के काम बंद कर देने के कारण कल रात यानि 22 अप्रैल, सोमवार रात को जस्टिस जे.एस. वर्मा का देहांत हो गया.

जस्टिस जे.एस. वर्मा का कॅरियर

जस्टिस वर्मा ने वर्ष 1955 में अपने कानूनी कॅरियर की शुरुआत की और वर्ष 1973 में उन्हें मध्यप्रदेश हाइकोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया. वर्ष 1986 में उन्होंने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला और सितंबर 1986 में उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस के पद पर बैठाया गया. उनके कार्यकाल का सुनहरा दौर शुरू हुआ जब उन्होंने वर्ष 1989 में देश की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीश के तौर पर अपना कार्यकाल संभाला था और वर्ष 1998 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मुखिया यानि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का ताज पहनाया गया. 18 जनवरी, 1998 को वह सेवानिवृत्त हो गए और सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार समिति का चेयरमैन बनाया गया और इस पद पर वह 4 नवंबर, 1999 से 17 जनवरी 2003 तक रहे.


जस्टिस वर्मा के मुख्य निर्णय

1. विशाखा फैसला: वर्ष 1992 में हुए भंवरी देवी गैंग रेप केस के बाद कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कठोर नियम लागू करने और कठोरता से उनका पालन करने का निर्णय भी जस्टिस वर्मा का ही था.

2. एस.आर.बोमई केस: वर्ष 1994 में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ यह निर्णय जिसमे जस्टिस वर्मा ने, राष्ट्रपति कब और किन-किन हालातों में विधानसभा भंग कर सकता है, उन्हें परिभाषित किया था.

3. संजय दत्त के खिलाफ फैसला: वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में अभिनेता संजय दत्त की संदिग्ध भूमिका के बाद उन्हें आर्म्स एक्ट का दोषी करार देते हुए सजा सुनाई.

4. निलाबती बेहरा केस: वर्ष 1996 में ऑडिशा की रहने वाली निलाबती बेहरा की चिट्ठी को जनहित याचिका मानते हुए फैसला सुनाया.

5. जमाते इस्लामी के पक्ष में फैसला: वर्ष 1994 में सरकार ने जमाते इस्माली को गैरकानूनी करार दिया था और सरकार के इसी फैसले को जस्टिस वर्मा ने खारिज किया.


जस्टिस वर्मा के परिवार के प्रति अपनी सांत्वना व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री का कहना था कि वह कानून के वृहद जानकार जस्टिस वर्मा के सुझावों की कमी महसूस करेंगे.


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