कहते हैं किसी अपराधी के अपराध की जड़ उसके बचपन में होती है. यही वह समय होता है जहां यदि बच्चे पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह सही की जगह गलत रास्ते की ओर मुंह कर लेता है. बच्चा उस तरह के माहौल में जीने लगता है जहां भीड़ में वह अपने आप को अकेला और असहाय भी महसूस करता है. बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त की लाइफ भी कुछ इसी तरह की है.
संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त और माता नरगिस दत्त के एकलौते बेटे थे. माता के रूप में उन्हें नरगिस का वह सब प्यार मिला जो एक बेटे को मिलता है. लेकिन मां द्वारा बेटे के प्यार को देख पिता सुनील दत्त को इस बात की चिंता सताने लगी थी कि इससे उनका बेटा डरपोक और कायर बनता जाएगा. इसलिए संजय कभी-कभी ऐसा काम करते थे जिसे देख कोई भी हैरान हो जाता था.
नरगिस की एक रिश्तेदार बताती हैं कि जब संजय 10 साल के हुए तब तक सुनील उन्हें मजबूत बनाने के लिए कई तरह पीड़ा देते थे. वह संजय को पार्क में ले जाकर एक पेड़ की डाल पर बिठा देते थे और उन्हें छलांग मारने को कहते. कोई उन्हें रोकता तो उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता था.
माना जाता है कि संजय दत्त को मजबूत बनाने के चक्कर में उन्हें बोर्डिंग स्कूल में डाला गया. संजू के स्कूल के समय के साथी इस बात को स्वीकार करते हैं कि बोर्डिंग में संजय की एक बड़े सेलिब्रेटी की पहचान उनके लिए मुसीबत की तरह थी. स्कूल में संजय एक अकेले छात्र थे जिन्हें और की तुलना में ज्यादा सजा दी जाती थी. स्कूल में बच्चों को मिलने वाली प्रताड़ना कोई नई बात नहीं है, आज भी देश भर में लाखों बच्चे हर दिन इस यातना से गुजरते हैं. उस समय भी ज्यादातर शिक्षक बच्चों को सताकर खुश होते थे. लेकिन संजू के मामले में तो लगता है जैसे वे यह दिखाना चाहते थे कि उन्हें उसके मां-बाप के रुतबे से कोई फर्क नहीं पड़ता.
मैक्सिमम सिटी नाम की किताब लिखने वाले सुकेतु मेहता ने अपनी किताब में यहां तक लिखा है कि संजय को पथरीली ढलान पर घुटनों के बल चलने की सजा दी जाती थी. उनके घुटने और हाथ से खून बहने लगता था लेकिन अगले दिन फिर से उनकी पट्टियां हटा कर वही सजा दोहराई जाती थी.
संजय अपने परिवार में मां-बाप, भाई-बहन, नौकर-चाकरों के आंखों के तारे थे लेकिन जब बोर्डिंग स्कूल में उन्हें यातनाएं दी जाने लगी तब उनके अंदर विद्रोही का भाव पनपने लगा था. यही वजह रहा कि जब वह घर वापिस आए तो इसी तरह का विद्रोही भाव उनके अंदर था. घर आने के बाद संजय का जल्द ही ऐसे दोस्तों के साथ उठना-बैठना शुरू हो गया जो नशे के शिकार थे और जो नियमित रूप से ड्रग्स लेते थे.
अभिनेता संजय दत्त को भी इसकी लत गई. यह लत इतनी भयंकर थी कि उन्होंने न केवल चुटकी भर ड्रग्स लेना शुरू कर दिया बल्कि वह कोकीन और हेरोइन भी इस्तेमाल करने लग गए. ऐसे में बेटा हाथ से निकलता देख मां नरगिस भी चिंता करने लग गई थीं. अब तक संजय पूरी तरह नशे की गिरफ्त में आ चुके थे. संजय की बिगड़ती हालत को देख उन्हें कैंडी अस्पताल के नशामुक्ति केंद्र ले जाया गया. वहां से उन्हें अमेरिका स्थित टेक्सास के एक नशामुक्ति केंद्र भेज दिया गया. यह उस समय तक की बात है जब संजय दत्त की एक अभिनेता के रूप में बॉलीवुड में एंट्री हो चुकी थी. वहां से ठीक होने के बाद संजय फिर वापस मुंबई लौटे और अपनी फिल्मों के काम में जुट गए लेकिन तब भी उनमें कहीं न कहीं वह विद्रोही भाव जरूर था जो उन्हें जाने-अनजाने अपराध की ओर मुड़ने पर मजबूर करता.
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