अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक आज विश्व के कई ऐसे देश हैं जो भुखमरी की समस्या से जूझ रहे हैं जहां लोगों को हर रोज दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती. इस मामले में भारत भी काफी पीछे है. आंकड़े बताते हैं कि कुपोषण के मामले में भारत की स्थिति अफ्रीकी देशों से भी खराब है. आज विश्वभर में कुपोषण और भुखमरी की समस्या से निपटना विश्व के लिए चुनौती जैसा है उसमें कहीं न कहीं होटलों, रेस्त्रां और शादी-ब्याह जैसे सामाजिक समारोह में खाने की बर्बादी एक प्रमुख कारण है.
आज विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) है. पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने साल 1972 से हर साल 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया. इस साल की थीम है “सोचो, खाओ और बचाओ” (Think.Eat.Save) जिसका मतलब है भोजन को बर्बाद न करते हुए पृथ्वी को बचाना.
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संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक विश्व में हर वर्ष 1.3 अरब टन से ज्यादा खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है जबकि हर सात में से एक व्यक्ति भूखे पेट सोने को मजबूर होता है तथा रोज तकरीबन 20 हजार से भी अधिक बच्चे भूख और कुपोषण से दम तोड़ देते हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इसके पीछे की जो वजह बताई है वह विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवन शैली है जहां खाने की बर्बादी और इससे हो रहे पर्यावरण को नुकसान पर ध्यान नहीं दिया जाता.
खाने की बर्बादी के मामले में भारत का कोई सानी है शादी-ब्याह जैसे सामाजिक समारोह में लाखों टन भोजन बर्बाद हो जाता है. हैसियत के हिसाब से यहां छोटे से छोटे समारोह में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं जिसकी खपत न होने की वजह से बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया जाता है.
बैंगलुरू के यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस के कुलपति के नारायन गौड़ा ने पिछले साल शोध किया था जिसमें पाया कि बैंगलुरू में लगभग 530 मैरेज हॉल हैं जहां सालाना एक अनुमान के मुताबिक 84,960 शादियां होती हैं. हर शादी में औसतन एक तिहाई खाना बेकार जाता है और अगर हर थाली की कीमत चालीस रुपये भी लगाएं तो साल में 339 करोड़ रूपये का खाना शादियों में बर्बाद होता है.
पिछले दिनों भारत सरकार ने शादी-ब्याह तथा अन्य सामाजिक समारोहों में बर्बाद हो रहे खाने को लेकर चिंता जताई थी और इसे रोकने के लिए गंभीर कदम उठाने की बात भी कही थी. हाल में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुपोषण को ‘राष्ट्रीय शर्म’ बताया था. अगर हाल यही रहा तो वह दिन दूर नही जब ‘राष्ट्रीय शर्म’ घर-घर की वास्तविक समस्या हो जाएगी.
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