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पर्दाफाश न हो जाए इसलिए पर्दे में ही रहने दो

वैसे तो सभी राजनीतिक पार्टियां दिखावे के लिए जनता के दरबार में एक-दूसरे की धुर विरोधी होती हैं लेकिन जब मामला संगठन के रूप में खुद की पहचान और निष्पक्षता की होती है तो यही राजनीतिक दल एक मंच पर एक ही भाषा बोलने लगते हैं. लोकतंत्र को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए जिस तरह से आजकल राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (Right to Information) के दायरे में लाने के लिए आवाज उठी है उससे कहीं न कहीं सभी पार्टियां तिलमिलाती हुई दिखाई दे रही हैं.


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गौरतलब है कि पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग ने एक फैसले में राजनीतिक दलों को खर्च और चंदे का ब्यौरा सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था. इससे पहले राजनीतिक दलों को जनता के प्रति जबावदेह बनाने के लिए आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल और अनिल बैरवाल ने सूचना आयोग के समक्ष अलग-अलग शिकायतें दर्ज करा राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (Political parties under RTI) के तहत लाने की मांग की थी.


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केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले के बाद तमाम राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर इसके खिलफ मोर्चा खोल दिया. हर किसी ने अपने मुताबिक तर्क देते हुए कहा कि हम जनता के प्रति उत्तरदायी हैं आरटीआई (Right to Information) के प्रति नहीं. कांग्रेस पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि कांग्रेस केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को अस्वीकार करती है जिसके तहत यह आदेश दिया गया था कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के तहत आते हैं और उन्हें जनता को जवाब देना चाहिए. वहीं आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी जमीन तलाश रही सीपीएम का कहना है कि वह ऐसा आदेश नहीं मान सकती जिसमें राजनीतिक दलों को सार्वजनिक संस्था बताया जाए. सीपीएम के मुताबिक ये फैसला राजनीतिक दलों के गलत आकलन पर आधारित है. जेडीयू ने भी केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले को गलत बताया है.


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वैसे मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा भी आरटीआई के मसले पर अपने पूरे पत्ते नहीं खोल रही है. पार्टी के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं तो कई इस पर चर्चा करने की बात कह रहे हैं. वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का कहना है कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाए जाने के मसले को लेकर संसद और बाहर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए और सभी का मत जानना चाहिए. आरटीआई (Right to Information) के दायरे में केवल राजनीतिक दलों को ही नहीं बल्कि सभी गैर सरकारी संगठनों को लिया जाना चाहिए. आपको बता दें अरुण जेटली बीसीसीआई से भी जुड़े हुए हैं जहां पहले ही आरटीआई का विरोध किया जा रहा है.


इस तरह देखा जाए तो कोई भी राजनीतिक दल केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले से सहमत नहीं दिखाई दे रहा है. हर किसी को लग रहा है कि इससे राजनीतिक दलों का चंदे के रूप में पर्दे के पीछे होने वाला गड़बड़झाला सबके सामने आ जाएगा. आपको बता दें आज पार्टियों की आय का सबसे बड़ा जरिया कॉरपोरेट हाउसों से मिलने वाला चंदा है. यही नहीं ये भी डर है राजनीतिक दलों को कि जिस तरह चुनाव में प्रत्याशियों के चयन के लिए मोटी रकम ली जाती है कहीं इस कानून के चलते उसका भी पर्दाफाश न हो जाए.


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