आम चुनाव नजदीक है ऐसे में सभी पार्टियां सरकार को घेरने के लिए योजना बना रही हैं. स्वयं सरकार भी अपने विरोधियों के हमले से निपटने के लिए अपनी कमर कस रही हैं लेकिन इन सबके बीच विपक्ष भारतीय जनता पार्टी अपने ही परिवार के अंतर्कलह से परेशान है. यह भारतीय जनता पार्टी का दुर्भाग्य ही तो है. पार्टी को इस समय जनता में जाकर सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ और ज्यादा मुखर होना चाहिए तो पार्टी अपने रूठे हुए सदस्यों को मनाने में लगी है.
खैर जो भी हो इस समय पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को मनाने में जुटा हुआ है. उधर मीडिया इस बात का पता लगाने में लग गई है कि आखिर आडवाणी ने किस वजह से इस्तीफा दिया है. ज्यादातर लोग यही मान रहे हैं कि उन्होंने पार्टी में निरंतर हो रही उपेक्षा के चलते अपने आपको पार्टी से दूर कर लिया. वैसे उनकी उपेक्षा की मुख्य वजह मोदी की बढ़ती लोकप्रियता है.
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पिछले कुछ सालों से आडवाणी नरेंद्र मोदी से अंदरूनी तौर पर परेशान-से चल रहे हैं. आपको याद हो 2011 में जब आडवाणी ने पूरे देश भर में रथ यात्रा निकाली थी उस समय ही उन्हें अंदाजा लग गया था कि बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए जो हवा चल रही है वह उनकी तरफ नहीं बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ है. वैसे इस बात का पता तो उन्हें 2009 के आम चुनाव के बाद लग गया था जब पार्टी को करारी हार मिली थी. तब पार्टी के कार्यकर्ता भी आडवाणी को छोड़ नए चेहरे की तलाश करने लगे थे.
जानकारों की मानें कि जैसे ही आडवाणी को मालूम चला कि उनकी पार्टी में हैसियत कम हो रही है वह पार्टी के अंदर गोलबंदी करने लगे. अपने समर्थकों और पुराने साथियों के साथ मिलकर मोदी विरोधी भाषा बोलने लगे ताकि किसी भी तरह से मोदी की छवि राष्ट्रीय स्तर की न बने. उन्होंने न केवल पार्टी के पुराने सदस्यों को अपने साथ लिया बल्कि सहयोगी दलों को भी मोदी के खिलाफ खड़ा करके उन्हें अपने समर्थन में ले लिया.
उधर मोदी भी इस बात को पूरी तरह से समझते थे कि पार्टी में अगर कोई है जो उनके सपने को पूरा नहीं होने देना चाहता तो वह लालकृष्ण आडवाणी हैं. इसलिए उन्होंने वरिष्ठ होने के नाते आडवाणी के खिलाफ समर्थन तो नहीं जुटाया लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) और बीजेपी के कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में जरूर खड़ा कर लिया. यही वह लोग हैं जो मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.
आज जब नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया जा चुका है तो आडवाणी ने इसका खुला विरोध किया. उन्होंने इस्तीफा देकर यह जाहिर कर दिया कि वह किसी भी हालत में मोदी को स्वीकार नहीं करेंगे. सूत्रों का कहना है कि इस्तीफे के बाद आडवाणी ने उनसे मिलने आए नेताओं को कहा है कि नरेंद्र मोदी देश के नेतृत्व के लिए सही नहीं हैं. उधर भाजपा और आरएसएस दोनों का यह मत था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए जाने के फैसले से पीछे नहीं हटा जाना चाहिए.
वैसे वर्तमान में जो भाजपा की स्थिति है उससे साफ जाहिर होता है कि कहीं न कहीं पार्टी के संगठन और उसके शीर्ष नेतृत्व में कमी है. तभी तो पार्टी का हर एक सदस्य मनमानी करता है. वह खुद को पार्टी का सर्वेसर्वा समझने लगा है तथा अपनी नाराजगी पार्टी के नियमों के खिलाफ जाकर सार्वजनिक कर रहा है.
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