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इस तेलंगाना में निजाम का खून है

भारत में छोटे राज्य का मुद्दा काफी पुराना है. इसकी नींव उसी समय डाल दी गई जब देश अभी आजाद नहीं हुआ था. आजादी से पहले तमाम तरह की रियासतों को अंदाजा हो गया था कि वह भारतीय संघ का हिस्सा होने वाले हैं और उन्हें किसी राज्य विशेष में विलय कर दिया जाएगा. आजादी के बाद बहुत सी रियासतों ने इस बात को स्वीकार कर लिया था जबकि कुछ आज भी इसका विरोध कर रहे हैं. इन्हीं रियासतों में एक है तेलंगाना क्षेत्र जिस पर कभी हैदराबाद राज्य के निजाम ने शासन किया था.


telanganaयह हैदराबाद के वही निजाम थे जो हैदराबाद राज्य को एक स्वतन्त्र देश बनाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने भारत में हैदराबाद के विलय को स्वीकृति नहीं दी. लेकिन आजादी के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर, 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ की जिसका नाम ‘ऑपरेशन पोलो’ रखा गया. भारतीय सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर, 1948 को समर्पण कर दिया. हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा.



धुन को चुराकर एक नया फ्लेवर देना तो कोई इनसे सीखे


वर्तमान में तेलंगाना क्षेत्र आंध्रप्रदेश रज्य का हिस्सा है. आजादी के बाद से ही यहां के लोगों की मांग है कि तेलंगाना आंध्रप्रदेश से अलग कर दिया जाए. इस क्षेत्र के लोगों का यह मानना है कि आंध्रप्रदेश की सरकारों में उनका उचित प्रतिनिधित्व न होने के कारण वहां का विकास रुका हुआ है.


वर्तमान आंध्रप्रदेश के 23 जिलों में से 10 जिले शामिल हैं. ये जिले मेडक, महबूबनगर, आदिलाबाद, निजामाबाद, करीमनगर. हैदराबाद, खम्मम, नलगोंडा, वारंगल, रंगारेड्डी हैं. इन 10 जिलों में से 5 जिले अति अल्प विकसित हैं. मेडक, महबूबनगर, आदिलाबाद, निजामाबाद और करीमनगर का एक बड़ा हिस्सा इस श्रेणी में आता है. इसी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं जबकि पूरे तेलंगाना क्षेत्र में फैले बुनकरों की हालत बहुत खराब है.


तेलंगाना क्षेत्र की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए जा रहे हैं. 1946 से ही इसकी नींव पड़ गई थी. उस समय यह ज्यादा दिन तक नहीं चला फिर 1969 में उस्मानिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने अलग राज्य के आंदोलन का बिगुल बजाया लेकिन बताते हैं कि तीन सौ से ज्यादा छात्रों की मौत के बाद ये आंदोलन भी खत्म हो गया फिर भी यहां के लोग अपनी मांग पर अड़े रहे. आज भी सक्रिय रूप से यहां के नेता और छात्र अपनी मांगों को मनवाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालते हैं.


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तेलंगाना क्षेत्र.


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