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नीतीश की दगा हिंदुत्व के लिए या फिर कुछ और

आगामी आम चुनाव को देखते हुए देश की लगभग सभी पार्टियां अपने रंग में रंगी हुई दिखाई दे रही हैं. सबको इस बात की चिंता सता रही है कि जनता के बीच उनका जनाधार कैसा रहेगा इसलिए वह कुछ ऐसे फैसले लेने के लिए उत्साह दिखा रहे हैं जिनसे लगता है कि भविष्य में उन्हें फायदा मिलेगा. भारतीय जनता पार्टी को ही ले लीजिए उसने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर दांव खेला है. उसे लगता है कि मोदी की लहर उसे सत्ता के शिखर तक पहुंचाएगी. वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीएन) के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भी भाजपा का साथ छोड़कर अपनी चुनावी जमीन तैयार करने के लिए एक अहम कदम उठाया है.


nitishगौरतलब है कि नरेंद्र मोदी को भाजपा में चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद एनडीए के प्रमुख सहयोगी जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है. इस तरह पिछले 17 सालों से चला आ रहा इन दोनों पार्टियों का साथ टूट गया है. इसके साथ ही बिहार में आठ साल पुरानी जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई है. जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 19 जून को विधानसभा के विशेष सत्र में विश्वास मत के लिए प्रस्ताव रखने का फैसला किया है .


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पटना में रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में जदयू अध्यक्ष शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ने की घोषणा की. जदयू का साथ छूटने के बाद एनडीए में अब केवल तीन दल – बीजेपी, शिवसेना और अकाली दल रह गए हैं. शरद यादव ने एनडीए के संयोजक का पद भी छोड़ दिया.


इस घोषणा के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जदयू ने स्वयं इसके लिए दिसंबर तक समय दिया था पर उसके बावजूद पिछले पांच दिनों के दौरान जिस प्रकार की गतिविधियां जारी रहीं और जदयू ने गठबंधन को तोड दिया, वह बिहार की जनता के साथ विश्वासघात है. इसलिए आगामी 18 जून को बिहार बंद का आह्वान किया गया है और उस दिन को भाजपा विश्वासघात दिवस के रूप में मनाएगी.


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मालूम हो कि 243-सदस्यीय बिहार विधानसभा में वर्तमान में जेडीयू के 118 विधायक हैं वहीं बीजेपी के 91, आरजेडी के 22, कांग्रेस के चार तथा लोजपा और सीपीआई के एक-एक विधायक हैं. सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है. बताया गया कि बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद नीतीश अपनी सरकार चलाने के लिए बहुमत के लिए निर्दलीय विधायकों से संपर्क साध रहे हैं. चर्चा कांग्रेस के समर्थन को लेकर भी चल रही है. बिहार में कांग्रेस के पास फिलहाल चार सीटें हैं.


नीतीश पर लगे आरोप

जिन बातों को ध्यान में रखकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ा उसको लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. जिस धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हुए वही बात उनके पक्ष में नहीं जाती. 2002 में गुजरात के दंगों के वक्त केंद्र में वाजपेयी सरकार में नीतीश रेल मंत्री थे. उस समय उन्होंने न तो मोदी के खिलाफ बोला और न ही अपने पद से इस्तीफा दिया. सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि भाजपा जब शुरू से ही हिंदुत्व पार्टी रही है और उस पर लगातार सांप्रदायिक होने के आरोप लग रहे हैं तो फिर 1996 में नीतीश एनडीए के साथ क्यों जुड़े ?


भाजपा और जदयू का यह जोड़ 1996 में हुआ था. उस समय जदयू की बजाय नीतीश समता पार्टी के नेता थे. तब बिहार में समता पार्टी के छह सांसद हुआ करते थे और भाजपा के 18. आज अगर बात करें तो बिहार से भाजपा के 12 सांसद हैं जदयू के 20. 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जदयू ने अपने 21 सांसदों के साथ भाजपा को समर्थन दिया था. इस सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री भी बने थे.


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