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सियासत में कोई ‘लंगोटिया यार’ नहीं

बिहार की जनता के दिमाग से वह यादें शायद ही धूमिल होंगी जिसमें आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन काल को जंगलराज का नाम देकर भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) राज्य की सत्ता पर काबिज हुए थे. जनता को विश्वास था कि दोनों पार्टियां मिलकर बिहार को एक नई दिशा प्रदान करेंगी.


bjp jduनीतीश के नेतृत्व में जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार  2005 में आरजेडी की सरकार को बाहर करके सत्ता पर काबिज हुई थी. कुछ सालों बाद ही लोगों को लगने लगा कि राज्य की कानून व्यवस्था पहले के मुकाबले कहीं बेहतर है और गांवों-कस्बों और शहरों में सड़कें सुधर गई हैं. जिसके बाद से पूरे देशभर में नीतीश और उनकी सरकार के काम को सराहा गया जिसके बाद स्वयं नीतीश की छवि विकास पुरुष की बनने लगी. इसका फायदा जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार  को 2009 के आम चुनाव और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. नीतीश की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की दोबारा बिहार में वापसी हुई.


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यही वह बिहार की जनता का जनादेश था जहां नीतीश को लगने लगा कि बिहार में भाजपा का वजूद उनकी वजह से है. उस समय पूरे देशभर में चर्चा होने लगी थी कि नीतीश की विकास छवि की बदौलत ही बिहार की जनता ने उन्हें और भाजपा को भारी बहुमत दिया. इस जनादेश के बाद ही जदयू और उनसे जुड़े नेता हर जगह प्रचार करने लगे कि बिहार में जो भी विकास का काम हो रहा है वह नीतीश की बदौलत ही हो रहा है न की जदयू-भाजपा गठबंधन की वजह से.


यही वह समय था जब दोनों पार्टियों में फूट पड़नी शुरू हो गई थी, जिसके बाद से जदयू-भाजपा में तल्खी की खबरें उठने लगी थीं. दोनों दल एक-दूसरे के बड़े नेताओं को निशाना बनाने लगे. कई बार तो गठबंधन टूटने की खबर भी आई लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की वजह से मामला दब जाता था.


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लेकिन आखिरकार कब तक यह मामला दबता. दिल में लगी आग को तो बाहर निकलना ही था. जैसे ही यह ऐलान हुआ कि नरेंद्र मोदी को भाजपा ने चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया है एनडीए के प्रमुख सहयोगी जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ दिया. असल में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच 2010 के बाद से ही छ्त्तीस का आंकड़ा रहा है और नीतीश और उनकी पार्टी यह कभी नहीं चाहती थीं कि मोदी को भाजपा में कोई बड़ा ओहदा मिले.


आज हाल यह है कि बिहार में विकास की बयार चलाने वाले दोनों दल एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हो चुके हैं. एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो चुके हैं. एनडीए से नीतीश कुमार के अलग होने के विरोध में बीजेपी मंगलवार ‘विश्वासघात दिवस’ मना रही है और उसने बिहार बंद का ऐलान किया है. खबर है कि बंद के दौरान पटना में बीजेपी और जेडीयू के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए और दोनों तरफ से जमकर लात-घूंसे और लाठी-डंडे चले. इस तरह से इस भिड़ंत ने दोनों दलों की दुश्मनी के संकेत दे दिए हैं जो आने वाले वक्त में चुनावी मैदान पर भी देखने को मिलेंगे.


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