उत्तराखंड में आई भारी तबाही के मंजर को दो हफ्ते पूरे होने वाले हैं. हजारों की संख्या में अभी भी लोग फंसे हुए हैं. राहत और बचाव कार्य खराब मौसम की वजह से बाधित हो रहा है. इस बीच देश की कई संस्थाएं प्रकृति के इस तांडव के बाद मदद के लिए आगे आई हैं. इसके पीछे किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ है तो कोई इंसानियत के नाते मदद करना चाह रहा है.
अब देश की राजनीतिक पार्टियों को ही ले लीजिए. गौरतलब है कि तबाही के कुछ दिनों बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड पहुंच गए थे. मुख्यमंत्री के तौर पर वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो तबाही का जायजा लेने के लिए उत्तराखंड गए थे. अपने दो दिन के दौरे के दौरान मोदी ने दावा किया कि उन्होंने देहरादून और ऋषिकेश से करीब 15000 गुजरातियों के घर लौटने की व्यवस्था करवा दी थी. यह खबर सोशल मीडिया में आग की तरह फैल गई. हर जगह मोदी की चर्चा होने लगी.
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उधर कांग्रेस इस मामले में मोदी की बढ़ती लोकप्रियता को पचा नहीं पा रही थी इसलिए विदेश में गए राहुल गांधी को तुरंत वापस बुलाया गया और आनन फानन में तुरंत राहत साम्रगी के साथ उत्तराखंड में पीड़ितों से हमदर्दी जताने के लिए भेजा गया. राहुल ने वहां जाकर अपने अंदाज में अस्पताल जाकर घायलों से मुलाकात की, साथ ही बाढ़ पीड़ितों से बात की. बाढ़ पीड़ितों ने राहुल को अपनी परेशानियों के बारे में बताया. राहुल ने सेना के कैंप में जाकर राहत और बचाव अभियान का जायजा भी लिया.
इस बीच खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उत्तराखंड में आपदा पीडि़तों के राहत और पुनर्वास के लिए पार्टी की प्रदेश इकाई की ओर से जुटाई गई सामग्री और धनराशि की पहली खेप बुधवार को लखनऊ से रवाना करेंगे.
यह बात तो साफ है कि देश की इन दोनों पार्टियों में इस बात की होड़ मची हुई है कि तबाही में कौन जनता की सहानूभूति लेने में आगे है. चुनाव नजदीक आते देख हर कोई यह चाहता है कि किस तरह से इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया जाए. एक दल जहां अपने सबसे बड़े नेता को जनता का हितैषी बताकर उत्तराखंड में तामाशा खड़ा करने के लिए भेजता है तो दूसरे दल का नेता भी इस मौके का फायदा उठाना नहीं भूलता. दोनों का मुख्य मकसद लोगों को सच्चा आश्वासन देना नहीं बल्कि राहत और बचाव कार्य में बाधा डालते हुए अपनी चुनावी जमीन तैयार करना है.
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