अकसर यह देखा जाता है चुनाव नजदीक आते ही हर पार्टी और उससे जुड़े नेता के सुर बदल जाते हैं. कोई वर्तमान गठबंधन में बने रहने के लिए नफा-नुकसान देखता है तो कोई अपने पिछली गलतियों को सुधारने के लिए कदम उठाता है. उनकी पूरी कवायद चुनावी राजनीति के ईर्द-गिर्द रहती है. अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को ही ले लीजिए जो मुस्लिमों के केंद्र में रखकर राजनीति करते रहे हैं आजकल हिंदुओं को भी लुभाने में जुट गए हैं.
हाल ही में एक चैनल को दिए इंटरव्यू में मुलायम सिंह यादव ने 90 के दशक में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का आदेश देने पर खेद जताया है. उन्होंने आगे कहा कि वो एक दर्दनाक फैसला था, लेकिन मेरे पास उस समय कोई और दूसरा विकल्प नहीं बचा था. यह देश की अखंडता का सवाल था. ग्यारह लाख से ऊपर कारसेवक विवादित परिसर के पास जमा हो गए थे. उस समय देश में शांति बनाए रखने के लिए जो सबसे सही फैसला था, वही मैंने किया.
आपको बता दें कि 2 नवंबर 1990 को बेकाबू हुए कारसेवकों पर यूपी पुलिस ने फायरिंग की थी, जिसमें कई कारसेवक मारे गए थे जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई. उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. वैसे यह पहला मामला नहीं है जब मुलायम ने हिंदुओं से संबंधित बयान दिया है. हाल के दिनों में मुलायम ने जिस तरह से भाजपा के नेताओं की तारीफ की है उससे उन्होंने मुसलमानों से बैर ले लिया है.
अब यहां सवाल उठता है कि मुलायम को अपनी गलती का एहसास चुनाव के समय ही क्यों हुआ. क्या उन्हें लग रहा है कि मुस्लिम जमीन जो उन्होंने अपने कई सालों की मेहनत की वजह से बनाई थी वह अब खिसकती जा रही है. या फिर उनके मन में भी मुंगेरी लाल के सपने की तरह प्रधानमंत्री बनने का सपना है जो मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदुओं को लेकर पूरा किया जा सकता है.
अपने आप को मुस्लिम हितैषी मानने वाले मुलायम आजकल जिस तरह की सोच लेकर चल रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है जैसे वह फिर वही गलती दोहरा रहे हैं जो उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में कल्याण सिंह को सपा में शामिल करके की थी. तब कल्याण सिंह को पार्टी में शामिल करके मुलायम ने अपने पैर पर कुल्हाडी मारी थी. आपको याद हो 2004 के उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 35 सीटें मिली थीं जो घटकर 2009 के लोकसभा चुनाव में 23 रह गईं.
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