कई दिनों चल रही जद्दो जहद के बाद भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. लेकिन इस बार भी पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को नजरअंदाज कर दिया गया.
पहले भी किया नजरअंदाज
आपको याद हो जब गोवा में इसी साल नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया उस समय भी लालकृष्ण आडवाणी काफी नाराज रहे. आडवाणी खराब तबीयत का बहाना बनाते हुए बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में शामिल नहीं हुए. जिसके बाद पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज करके मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया.
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद मोदी को लेकर अब उम्मीदें बढ़ गई हैं. उनके सामने जो मुख्य रूप से चुनौतियां है वह इस प्रकार है.
1. क्या नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को विजय दिला पाएंगे?
2. क्या मोदी उन मोर्चों पर सफल हो पाएंगे जहां आडवाणी 2009 में नाकामयाब रहे थे?
3. क्या भाजपा के पुराने नेता और सहयोगी प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी को स्वीकार कर पाएंगे?
4. सवाल यह भी है कि क्या 2009 के आडवाणी के मुकाबले मतदाताओं में मोदी को लेकर ज्यादा आकर्षण है?
5. मोदी के समर्थकों और विरोधियों, दोनों में उनकी मुस्लिम विरोधी छवि है. इसलिए क्या उनकी मुस्लिम विरोधी छवि भारत की 80 फीसदी हिंदू जनसंख्या में भाजपा के समर्थन का सैलाब पैदा कर सकेगी?
6. एक अन्य सवाल यह भी है कि नरेंद्र मोदी की छवि एक ‘विकास पुरुष’ की बनाई गई है. कहा जाता है कि उन्होंने आर्थिक विकास के बूते अपने राज्य में खुशहाली पैदी की. वे अपनी इस उपलब्धि का जिक्र हर मंच पर जमकर करते भी हैं. अब सवाल उठता है कि गुजरात में सुशासन का मोदी का दावा क्या भारत के 80 करोड़ वोटरों का उतना हिस्सा अपनी तरफ खींच पाएगा जिसके बल पर उनकी पार्टी की सरकार बन सके.
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