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Ganesh Chaturthi: विसर्जन से हो रहे हैं विघटन

इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज सार्वजिक आस्था ने पर्यावरण को दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. हर साल भारत देश के कोने-कोने में देवी देवताओं की पुजा की जाती है. इस दौरान लाखों मूर्तियों को नदी, तालाबों और झीलों के पानी में विसर्जित की जाती हैं और उन पर लगे वस्त्र, आभूषण और कई तरह के केमिकल पेंट भी पानी के हवाले हो जाते हैं. आज गणेश महोत्सव का आखिरी दिन है. इसको देखते हुए भारी संख्या में भक्त भगवान गणेश की मुर्ति को समुंद्र, नदी, तालाब और झीलों में विसर्जित करते हैं.


ganesh immersion 1इसके नुकसान-Ganesh Immersion

अधिकतर मूर्तियां पानी में न घुलने वाले प्लास्टर आफ पेरिस (पीओपी) से बनी होती है. पीओपी एक ऐसा पदार्थ है जो कभी भी नष्ट नहीं होता है और इससे वातावरण में प्रदूषण का मात्रा के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है.  इसका इस्तेमाल हर तरह की मुर्तियों को सुंदर बनाने के लिए किया जाता है. प्लास्टर आफ पेरिस, कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है जो कि जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट डीहाइड्रेट) से बनता है. वर्तमान में इसकी मांग और ज्यादा बढ़ गई है.


भगवान गणेश की पूजा पहले क्यों की जाती है


वहीं ईको फ्रेंडली मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनती हैं जिन्हें विसर्जित करने पर वे आसानी से पानी में घुल जाती हैं. लेकिन अब इन्हीं मूर्तियों विषैले नॉन बायोडिग्रेडेबेल रंगों में रंगा जाता है. इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की बॉयोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड तेजी से घट जाती है जो जलजन्य जीवों के लिए कहर बनता है.

कुछ साल पहले यह खबर सुनने में आया कि मुंबई में गणेश की मूर्तियों के विसर्जन की वजह से लाखों की तादाद में जुहू किनारे मरी ही मछलियां पाई गई.


मुंबई में गणेश चतुर्थी-Ganesh Chaturthi

10 दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई की गलियां गणेश पंडालों से पट जाती हैं. इस दिन सार्वजनिक पूजा पंडालों और घरों में भगवान गणेश की नयनाभिराम प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं. सार्वजनिक गणेश पंडालों में 10 से 30 मीटर तक की ऊंची प्रतिमाएं रखी जाती हैं. पंडालों को बिजली के झालरों और फूलों से सजाया जाता है. प्रभादेवी स्थित विश्वविख्यात सिद्धिविनायक और अन्य मंदिरों में सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.


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