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और कितना लहू बहेगा

भारत में धार्मिक स्थलों पर होने वाली भगदड़ एक बहुत ही बड़ी समस्या बन चुकी है जिसका निदान न तो सरकार के पास है और न ही आयोजको के पास. मध्यप्रदेश में दतिया के रतनगढ़ मंदिर में हुई भगदड़ गलतियों से न सीखने की जिद, बदइंतजामी और अमानवीयता जैसे दुर्गुणों का मेल है.

मध्य प्रदेश के दतिया जिले में नवमी के अवसर पर रतनगढ़ माता मंदिर से एक किमी पहले पुल टूटने की अफवाह फैलने से मची भगदड़ में 100 से अधिक श्रद्घालुओं की मौत हो गई. मरने वालों में महिलाएं और बच्चे हैं. घायलों की संख्या दो सौ की करीब बताई जा रही है.


पुलिस की अमानवीयता

भगदड़ के लिए मौके पर तैनात पुलिसकर्मी न केवल जिम्मेदार थे, बल्कि उन्होंने हादसे के बाद भी इंसानियत को शर्मसार करने वाली करतूतों को अंजाम दिया. पुलिस के जवानों ने कई शवों को सिंध नदी में फेंक दिया और मृत महिलाओं की देह से उनके गहने भी उतार लिए.


पिछली गलतियों से कोई सीख नहीं

25 जनवरी, 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधार देवी मंदिर में सालाना तीर्थाटन के दौरान भगदड़ में 340 भक्तों की मौत.

3 अगस्त, 2008 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफवाह के चलते मची अफरातफरी से 162 श्रद्धालुओं की मौत, 47 घायल.

10 अगस्त, 2008 को कोटा जिले में प्राचीन महादेव मंदिर की सीढि़यां टूटने से दो तीर्थयात्रियों की मौत हुई.

30 सितंबर, 2008 को जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़, 249 श्रद्धालुओं की मौत, 400 से अधिक घायल हुए.

04 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ स्थित कृपालु जी महाराज के आश्रम में मची भगदड़ में 63 लोग मारे गए. इनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे.

14 जनवरी, 2011 को केरल के सबरीमाला में मकर ज्योति के पावन दिन पर हुई भगदड़ में 104 लोग मारे गए.

9 नवंबर 2011 को हरिद्वार में जिला प्रशासन और गायत्री परिवार की बदइंतजामियों के कारण गायत्री महायज्ञ में मची भगदड़ ने 20 जिंदगियां लील लिया. 2010 में भी इसी जगह महाकुंभ में मची भगदड़ में नौ श्रद्धालु मरे थे.

19 नवंबर, 2012 को पटना में छठ पूजा के दौरान गंगा नदी के पुल पर मची अफरातफरी में 18 लोग मारे गए.

11 फरवरी, 2013 को इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 37 श्रद्धालु मारे गए. ये लोग महाकुंभ से पुण्य कमाकर लौट रहे थे.


भारी अव्यवस्था और तालमेल के अभाव के कारण ऐसी घटनाओं पर हमेशा ही राजनीति की जाती है. चुनावी माहौल होने के कारण ऐसे मुद्दे पर राजनीति का स्तर गिर जाता है और आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है.


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