अकसर हम देखते हैं कि जब भी कभी भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चर्चा होती रही है उससे पहले उनकी नाकामी और विफलता मुंह बाए खड़ी रहती है. उन्होंने 2004 से अब तक जो भी अच्छे काम किए हैं उनके कमजोर नेतृत्व ने सब कुछ मटियामेट कर दिया है. लेकिन एक संस्था है जो मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर तो नहीं लेकिन विश्व के शक्तिशाली सिखों की सूची में शीर्ष पर रखती है.
‘सिख डायरेक्टरी’ नामक संस्था ने पहले वार्षिक प्रकाशन ‘सिख 100’ में प्रधानमंत्री को सबसे ऊपर रखा है. यह सूची दुनिया के प्रभावशाली समकालीन सिखों की है. इसमें कहा गया है कि 81-वर्षीय मनमोहन सिंह ‘एक विचारक और स्कोलर के तौर पर बहुत प्रतिष्ठित हैं.’ मनमोहन सिंह का परिचय देते हुए कहा गया है, उन्हें काम के प्रति उनकी लगन और शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ उनकी पहुंच एवं विनम्र व्यवहार लिए काफी सम्मान दिया जाता है.
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इस सूची में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया (69) को दूसरा जबकि श्री अकाल तख्त साहिब के मौजूदा प्रमुख जत्थेदार सिंह साहिब गियानी गुरबचन सिंह को तीसरा स्थान दिया गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को चौथा सबसे ताकतवर सिख करार दिया गया है.
क्या सच में मनमोहन ताकतवर सिख हैं ?
एक सर्वे से पता चलता है कि जब 2004 में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर पूर्व में वित्तमंत्री रहे मनमोहन सिंह को इस पद पर बैठाया था तो पूरे देश में खुशियों की लहर दौड़ गई थी. खासकर पंजाब को इस बात का बड़ा गर्व हुआ था कि उनके यहां का कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बना है. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने का असर पंजाब में 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के तौर पर भी दिखा. कांग्रेस ने प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2009 के बाद में स्थिति पूरी ही बदल गई. यूपीए की सरकार में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार ने मनमोहन सिंह की लोकप्रियता को पूरी तरह से घटा दिया था. यही वजह रही की पंजाब में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा.
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जानकार मानते हैं कि सिखों में मनमोहन सिंह से मोहभंग की सबसे बड़ी वजह यह है कि लोगों के बीच में यह धारणा बन गई है कि वे कहने को तो प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनके हाथ में कुछ नहीं है और उन्हें हर फैसला सोनिया गांधी से पूछकर करना पड़ता है. यही बात शायद सिखों को खटकती है.
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