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पंगु हो गया है चुनाव आयोग

चुनाव नजदीक आते ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में छींटाकाशी का दौर शुरू हो जाता है. पार्टी से जुड़े स्टार नेता एक-दूसरे पर राजनैतिक प्रहार करने लगते हैं लेकिन यह राजनैतिक प्रहार आज के दौर में निजी प्रहार के रूप में बदल चुका है. सामने वालों को नीचा दिखाने के लिए ये नेता इस कदर हावी दिख रहे हैं कि इन्हें चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता का भी ख्याल नहीं रहता. हाल के कुछ मामलों को देखकर ऐसा ही प्रतित होता है.


election commission 1आदर्श आचार संहिता का उल्लघंन

कुछ दिन पहले कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि “पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगों के कुछ पीड़ितों के संपर्क में है”. बीजेपी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा था कि वह आग लगाते हैं और हम बुझाते हैं. विपक्षी पार्टी की शिकायत पर चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को नोटिश दिया. चुनाव आयोग ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से कहा है कि वह चुनावी रैलियों में अपने भाषणों में संयम बरतें.


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हाल ही में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने एक रैली के दौरान को कांग्रेस के हाथ चुनाव चिह्न को ‘खूनी पंजा’ एवं ‘जालिम हाथ’ बताकर आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया. मोदी के इस टिप्पणी पर नाव चुनाव आयोग ने ‘खूनी पंजा’ टिप्पणी पर चुनाव आचार संहिता के कथित उल्लंघन को लेकर नरेंद्र मोदी को नोटिस जारी किया और जवाब मांगा.


वैसे मोदी यही नहीं रुकते उन्होंने एक रैली में राहुल गांधी पर निजी प्रहार करते उन्होंने कहा कि “दिल्ली से आए शहजादे कहते हैं कि केंद्र ने राज्य के विकास के लिए बहुत पैसे दिए, वह बताएं कि यह पैसा केंद्र के पास कहां से आया, क्या उनके मामा ने दिए हैं?“. इसके अतिरिक्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी तीखा हमला करते हुए कहा ‘मैडम आप बीमार हैं. शहजादे को बागडोर संभालने दीजिए’. व्यक्तिगत हमले करने के मामले में कांग्रेस भी पिछे नहीं रहती. सोनिया गांधी का वह बयान कौन भूल सकता है जब उन्होंने एक जनसभा में नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कह दिया था. इस पर चुनाव आयोग ने नोटिश भी थमाया था.


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पंगु हो गया है चुनाव आयोग

चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए संविधान ने चुनाव आयोग को कुछ जिम्मेदारियां दी हैं लेकिन क्या चुनाव आयोग उन जिम्मेदारियों को सही तरह से निभा पा रहा है. सवाल उठता है कि आखिर आयोग की काम केवल नोटिस देने और डांट-डपटने तक ही सिमट कर रह गया है. क्या वह आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में संबंधित व्यक्ति अथवा दल को नोटिस देने और दोषी पाए जाने की स्थिति में फटकार लगाने के सिवाय कुछ और बड़ी कार्यवाही नहीं कर सकता.


टीएन शेषन और जेएम लिंगदोह के दौर में चुनाव आयोग में कुछ हद तक सक्रियता देखी गई. इन्ही के कार्यकाल में बूथ कैप्चरिंग और नकली मतदाता बनाने जैसे कामों पर भी कुछ रोक लगाई जा सकी. लेकिन पिछले एक दशक की अगर बात की जाए तो चुनाव सुधारों को लेकर चुनाव आयोग पंगु साबित हुआ है.


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