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सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक पर मोदी की बौखलाहट

2014 के आम चुनाव से पहले देशभर में कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा के समर्थन में माहौल बनता दिख रहा है. इसे अधिकतर लोग नरेंद्र मोदी की लहर के रूप में ले रहे हैं. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस समय पूरे देश में मोदी एक बहुत बड़े और लोकप्रिय नेता हैं. भाजपा की धुर विरोधी पार्टी कांग्रेस भी इसे स्वीकार करती है. तभी तो रहकर-रहकर कांग्रेस कुछ ऐसे मुद्दे उठाती है जिसका कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से नरेंद्र मोदी से संबंध है.


narendra modiताज़ा मामला सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक से संबंधित है. केंद्र की यूपीए सरकार धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और बढ़ते सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए संसद के इसी सत्र (शीतकालीन सत्र) में विधेयक लाने का मन बना चुकी है, जिसका भाजपा लगातार विरोध कर रही है. विरोध करने वालों में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी प्रमुख हैं.


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जब से इस विधेयक को संसद के शीतकलीन सत्र में लाने की चर्चा शुरू हुई है मोदी देश के अन्य मुद्दों को छोड़कर केवल इसी पर बात कर रहे हैं. इस विधेयक को हटाने के लिए जगह-जगह गुहार लगा रहे हैं. इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी ने देश के कुछ मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर अपील की है कि वे राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठें और केंद्र के प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का विरोध करें.


अपनी बात को और पुख्ता करते हुए मोदी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि यह विधेयक ‘राज्य सरकारों की शक्तियों में खुली घुसपैठ’ है. उन्होंने कहा कि यह विधेयक समाज का ध्रुवीकरण करेगा और धार्मिक तथा भाषायी पहचानों के आधार पर नागरिकों पर अलग-अलग आपराधिक कानून लागू करने के विचार को पेश करेगा. मोदी ने कहा कि इससे लोक सेवकों का मनोबल भी गिरेगा और भविष्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटने में राज्य सरकारों को प्रभावित करेगा. मोदी ने जिन मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा उनमें मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के पृथ्वीराज चव्हाण, मणिपुर के ओकराम इबोबी सिंह और मेघालय के मुकुल संगमा तथा अन्य शामिल हैं.


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इससे पहले नरेंद्र मोदी ने सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी थी. मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक ‘तबाही का नुस्खा’ है. मोदी ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि राजनीति के कारणों से और वास्तविक सरोकार की बजाय वोट बैंक की राजनीति के चलते विधेयक को लाने का समय संदिग्ध है. मोदी ने कहा कि प्रस्तावित कानून से लोग धार्मिक और भाषाई आधार पर और भी बंट जाएंगे.


अब सवाल उठता है कि आखिर मोदी सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक पर बौखलाए क्यों हैं तो इसका जवाब उनके अतीत से मिल जाएगा. सांप्रदायिक हिंसा को लेकर अगर किसी नेता पर सबसे अधिक दाग है तो वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. 2002 के गुजरात दंगों में जिस तरह से मुसलमानों और हिंदुओं का नरसंहार हुआ उसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ होने की बात कही जाती है. तब उस समय के प्रधानमंत्री और भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपयी ने मोदी को लेकर कहा था कि उन्होंने ‘राजधर्म’ का पालन नहीं किया.


नरेंद्र मोदी पर लगा यह दाग समय-समय पर उनके विरोधियों द्वारा उठाया जाता रहा है. अब यह विधेयक उन्हें कटघरे में खड़ा करने के लिए बेताब बैठा है. सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक पर मोदी की बौखलाहट बता रही है कि यह विधेयक उनके बढ़ते कॅरियर में रुकावट डाल सकता है.


क्या है विधेयक ?

प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारों को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे अनुसूचित जातियों, जन जातियों, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को लक्ष्य करके की गई हिंसा को रोकने और नियंत्रित करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें. इस मसौदे में हिंसा की परिभाषा, सरकारी कर्मचारियों द्वारा कर्तव्य की अवहेलना की सजा भी तय की गयी है.


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