5 जनवरी 2014 देश के लिए गर्व का दिन रहा जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने देशवासियों को नए साल का तौफा दिया. भारत ने रविवार को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया. परीक्षण में सौ फीसद खरे उतरे स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का कमाल कर दिखाया है. इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिए रॉकेट जीएसएलवी डी- 5 (भूस्थतिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन) का सफल प्रक्षेपण कर यह बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है.
49.13 मीटर लंबा जीएसएलवी डी 5 रॉकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रविवार शाम चार बजकर 18 मिनट पर रवाना हुआ और 17.13 मिनट की उड़ान के बाद उसने 1982 किलोग्राम के संचार उपग्रह जीसैट-14 को कक्षा में स्थापित किया. प्रधानमंत्री ने इस उपलब्धि पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है.
वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गय यह प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. इसके साथ ही 20 साल से लगे इसरो की वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई और जीएसएलवी कार्यक्रम की असफलता के दौर को समाप्त हुआ. दरअसल देसी क्रायोजेनिक इंजन के माध्यम से जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए 2001 से ही एक गंभीर चुनौती बना हुआ था. रविवार के प्रक्षेपण के साथ जीएसएलवी की यह आठवीं उड़ान थी. इसके पूर्व के सात में से तीन मिशन में इसरो को असफलता ही हाथ लगी थी.
साल 2010 में जीएसएलवी का प्रक्षेपण दो बार विफल रहा था जबकि पिछले साल 19 अगस्त को आखिरी वक्त में इसका प्रक्षेपण से दो घंटे पहले दूसरे चरण की लिक्विड फ्यूल सिस्टम यूएच25 में रिसाव के बाद प्रक्षेपण स्थगित करना पड़ा था.
सफलता के मायने
इस मिशन का प्राथमिक लक्ष्य विस्तारित सी और केयू-बैंड ट्रांसपोंडरों की अंतर्कक्षा क्षमता को बढ़ाना और नये प्रयोगों के लिए मंच प्रदान करना है.
जीएसएलवी डी-5 ने संचार उपग्रह जीसैट-14 को भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर न सिर्फ स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक की सफलता पर मुहर लगाई है बल्कि संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में देश को हो रहे भारी नुकसान से बचाने का रास्ता साफ किया है.
विशिष्ट क्लब में शामिल
जीएसएलवी डी-5 के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है जिसके पास क्रायोजेनिक तकनीक है. इसमें शामिल है अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस. करीब 365 करोड़ रुपये की लागत वाले रॉकेट जीएसएलवी डी-5 के इस सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत विश्व का छठा देश बन गया है.
क्या होते हैं जीसेट सैटेलाइट
जियोसिंक्रोनस या जियोस्टेशनरी उपग्रह वे होते हैं जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर स्थित होते हैं और वह पृथ्वी की गति के अनुसार ही उसके साथ-साथ घूमते हैं. इस तरह जहां एक ओर ध्रुवीय उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है, वहीं भूस्थिर उपग्रह अपने नाम के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में एक ही स्थान पर स्थित रहता है, यह कक्षा पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर ऊपर होती है.
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