Menu
blogid : 314 postid : 692662

ठाकरे परिवार में संपत्ति और सत्ता की लड़ाई

महाराष्ट्र की धरती हमेशा ही अपने आप में कई इतिहासों की जननी रही है. इसी धरती पर बाल ठाकरे जैसे मराठा मानुष भी हुए जिन्होंने राजनीति में अलग राह चलते हुए भी कामयाबी की अनोखी दास्तानें लिखीं.

अगर बाल ठाकरे को लोग एक कट्टर हिंदू, कद्दावर नेता, बेलगाम कड़वे बोलों के लिए कुख्यात मानते थे तो उन लोगों की भी कमी नहीं है जो बाल ठाकरे को बालासाहेब ठाकरे के नाम से भी जानते थे. उनके लिए बाल ठाकरे होने का अर्थ था दृढ़ निश्चयी, उदार और मिलनसार व्यक्तित्व. बाला साहेब देश में एक ऐसे नेता हैं जिनकी आलोचना में जितने हर्फ लिखे जा सकते हैं, शायद उतने ही प्रशंसा में भी. आज इस बेमिसाल नेता की जयंती है.


uddhav thackeray and jaidev thackeray 1एक अलग ही शख्सियत

बाल ठाकरे ने पिछले चार दशक से शिवसेना की कमान ऐसे सेनापति होकर चलाया जो केवल आदेश देता था और शिवसैनिक उसका किसी भी हद तक जाकर पालन करते. उनकी कही गई एक-एक बात पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए संविधान की लकीर होती थी.


Read: गुलाम भारत का आजाद फौजी


मराठा क्षत्रप बाल ठाकरे का जब नवंबर 2012 में निधन हुआ था तो पूरा राज्य शोक की लहर में डूब गया था. एक तरफ जहां आम से लेकर खास तक हर कोई इस शिवसेना के सेनापति को याद करके अपनी संवेदना प्रकट कर रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ राजनीति मंच पर इस बात की बहस हो रही थी कि क्या बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे अपने परिवार और पार्टी (शिव सेना) को बिखरने से बचा पाएंगे. उद्धव ठाकरे पर शक इसलिए किया जा रहा था क्योंकि पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं था जो बाल ठाकरे के कद के इर्द-गिर्द भी पहुंच सकता हो या उन्हें टक्कर देता हो.


करोड़ों की संपत्ति को लेकर विवाद

यह बात इसलिए की जा रही है क्योंकि हाल ही में बाल ठाकरे की करोड़ों की संपत्ति को लेकर उनके बेटे उद्धव और जयदेव ठाकरे कानूनी झगड़े में उलझे हैं. निधन के बाद बाल ठाकरे ने उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया था. शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की वसीयत को लेकर उनके दो पुत्रों में कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है.


Read: कब्र में सोई वह बच्ची


ठाकरे के दोनों पुत्रों के बीच यह कानूनी जंग तब शुरू हुई, जब उनके छोटे पुत्र एवं शिवसेना के वर्तमान अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की वसीयत को अमल में लाने के लिए बांबे हाई कोर्ट में प्रोबेट याचिका दायर की. इस याचिका को उद्धव के बड़े भाई जयदेव ने चुनौती दी है. जयदेव का कहना है कि वसीयत पर दी गई तारीख एवं उसकी भाषा को देखते हुए नहीं लगता कि यह वसीयत उनके पिता द्वारा लिखवाई गई होगी. अंग्रेजी में लिखी वसीयत पर स्वर्गीय बाल ठाकरे के हस्ताक्षर मराठी में हैं. जयदेव का तर्क है कि जिंदगी भर मराठी मानुष के लिए संघर्ष करते रहे उनके पिता अपनी वसीयत अंग्रेजी में नहीं लिखवा सकते. ठाकरे के हस्ताक्षर पर भी जयदेव ने यह कहते हुए सवाल उठाया है कि वसीयत पर दी गई तारीख को उनके पिता इतने बीमार थे कि वह हस्ताक्षर करने की स्थिति में ही नहीं थे.


बाल ठाकरे का पुत्र मोह

वैसे परिवार में बिखराव की लकीर तो 2006 में स्वयं बाल ठाकर ने ही खींच दी थी. तब बाल ठाकरे ने अपने पुत्र मोह में आकर अपनी पार्टी के दो टुकड़े हो जाना तो गवारा कर लिया परंतु अपने भतीजे को अपने बेटे पर तरजीह देने से साफ इंकार कर दिया. आपको बताते चलें कि दिवंगत नेता बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने वर्ष 2006 में शिवसेना से नाता तोड़ दिया था जिसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया. बाल ठाकरे के निधन के बाद यह कयास लगाया जा रहा था कि राज ठाकरे अपनी पार्टी के साथ शिव सेना में शामिल हो सकते हैं.


Read more:

हाथ में सिगार और दिल में आग

बाल ठाकरे:विवादों ने बनाया नायक !!

बाल ठाकरे के जीवन से जुड़ी कुछ खट्टी-मीठी बातें!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh