भारवर्ष में उदारता से दान करने की परम्परा रही है. उदारता चाहे दधीचि के अपनी हड्डियों को दान करने की हो अथवा कर्ण द्वारा अपना कवच-कुंडल दान में देने की. इसके अलावा भी कई लोगों ने समय-समय पर समाज कल्याण के लिए दान किया है. लेकिन हमारे देश की एक तस्वीर यह भी है कि कुछ लोग दिन-प्रतिदिन अमीर और कुछ गरीब होते जा रहे हैं. ऐसे में सामान्य लोगों के मन में इस भावना ने भी अपना डेरा जमाया हुआ है कि भारत के उद्योगपति केवल पूँजी बनाने पर ध्यान देते हैं और समाज के विकास और कल्याण के लिए दान नहीं करते.
इसके विपरीत राजस्थान के इस दिहाड़ी मजदूर ने मिसाल पेश करते हुए यह साबित कर दिया है कि उदारता धन-दौलत से नहीं अपितु दिल से आती है. उसके इस कृत्य से इस बात को फिर बल मिला है कि दान के लिए दौलतमंद होने से ज्यादा जरूरी हृदय का विशाल होना है. मैले-कुचले कपड़े, फटे-पुराने चप्पल और दिन भर की मजदूरी उसके व्यक्तित्व का अनुमान लगाने वालों को 11,000 वोल्ट का झटका दे सकती है. पढ़िए बड़े-बड़े उद्योगपतियों को शर्मसार करने वाली उस दिहाड़ी मजदूर की उदारता की कहानी….
Read: मजदूर-किसान को कौन पूछता है यहां
जोधपुर शहर में दिहाड़ी मजदूरी से अपने परिवार का भरन-पोषण करने वाले 62 वर्षीय शकूर मोहम्मद ने वर्ष 90 के दशक में 4,000 रूपये में छह भूखंड खरीदे थे. ये सभी भूखंड 150 वर्ग गज की आकार के थे. लेकिन सामुदायिक कल्याण के लिए शकूर मोहम्मद ने अपने तीन भूखंडों को अस्पताल, मदरसा और मस्जिद के निर्माण के लिए दान कर दिया है. शकूर मोहम्मद ने बाकी बचे दो भूखंडों को अपनी दो बेटियों को दे दिया है और एक भूखंड को प्रयोगशाला बनाने के लिए रखा है. करीब दो वर्ष पहले अपनी माँ के नाम पर एक छोटा-सा अस्पताल बनवाने के लिए अपनी भूमि का एक खंड उन्होंने दान किया था. जोधपुर के तत्कालीन महापौर रामेश्वर दाधीच ने उस भूखंड पर करीब 40 लाख रूपये की लागत से एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनवाया जिसमें हर रोज करीब 50 मरीज ईलाज के लिए आते हैं.
Read: एक भारतीय जिसने सरकारी कोष में दान किए पाँच टन सोना
स्वयं के अनपढ़ होने की टीस अब भी शकूर मोहम्मद के हृदय में है. इसलिए वो चाहते हैं कि उसके समुदाय के बच्चे पढ़ें. अपनी इसी ख्वाहिश की पूर्ति के लिए उन्होंने मदरसा के निर्माण लिए अपनी भूमि का एक खंड दान कर दिया है. आज हर भूखंड की कीमत करीब 25 लाख रूपये से अधिक है. कुल मिलाकर इनकी अनुमानित कीमत एक करोड़ रूपये से अधिक है. लेकिन आज भी शकूर मोहम्मद अपनी पत्नी के साथ सादा जीवन व्यतीत करते हुए अपनी एक बेटी के साथ रहते हैं. इसके अलावा जो एक आदत उन्होंने अब तक नहीं छोड़ी है वो है रोजाना कई घंटे तक मजदूरी कर जीवनयापन की! Next….
Read more:
Read Comments