आज के समय में पढ़ाई का उद्देश्य कम से कम एक नौकरी तो होती ही है. नौकरी सरकारी हो तो क्या कहने! लेकिन अगर नौकरी निजी क्षेत्र में मिले तो हर पेशेवर की चाहत होती है कि उसे ऊँची पगार मिले. इसके अलावा अन्य सुविधाओं के साथ नियमित अंतराल पर उन्हें मौद्रिक प्रोत्साहनों की भी चाहत रहती है. लेकिन शनै: शनै: ही सही पर अब वो परिस्थितियाँ बदलती जा रही है. युवा अब शहरों से ऊँची पगार और शानदार जीविका को छोड़ गाँवों की ओर लौटने लगे हैं. ऐसे कई युवा अब अपने गाँव की तस्वीर बदल अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा-स्रोत बन रहे हैं. एक ऐसे ही युवा की प्रेरणाप्रद कहानी…..
इस युवक ने सिंगापुर जाकर हॉटेल प्रबंधन का पाठ्यक्रम पूरा किया. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में व्यवसाय प्रबंधन का पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद वो वहीं एक सैरगाह(रिजॉर्ट) में प्रबंधक की नौकरी करने लगे. लाखों का मेहनताना और ऑस्ट्रेलिया जैसा देश! वो वहाँ अपनी शानदार जीविका का आनंद लेने लगे.
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हनुमान नाम का यह युवक राजस्थान के नागौर का रहने वाला है. हालांकि ऐसी नहीं है कि उन्हें विदेश में जाकर पढ़ाई करने में कोई वित्तीय बाधा आई. उनके बड़े भाई भी लंदन में चिकित्सा के पेशे में हैं. ऑस्ट्रेलिया में प्रबंधक के तौर पर कार्य करने के दौरान ही यहाँ उनके राज्य में राजस्थान सरकार ने सरपंचों के लिए शिक्षित होने का नियम लागू कर दिया.
गाँव लौटने पर उन्हें भी इस नियम की जानकारी हुई. इसके बाद उन्हें राजनीति में शामिल होने का यह अच्छा अवसर लगा. राजनीति में नाम, शोहरत और पैसा तीनों देखकर उन्होंने अपने गाँव में सरपंच के पद पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया. चुनाव लड़ने के फैसले से ज्यादा खुशी उनके सगे-संबंधियों को इस बात पर हुई कि वह वापस गाँव में उनके साथ आकर रहेगा. इस फैसले का उनके बड़े भाई ने भी स्वागत किया. बड़े भाई और संबंधियों की मदद से उन्होंने सरपंच पद के लिए अपना नामांकन भरा और निर्वाचित भी हुए. अब वो अपने गाँव के सरपंच हैं.
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सरपंच के तौर पर वो अपने गाँव के पेयजल को फ्लोराइड मुक्त कर उसकी शुद्धता सुनिश्चित करना चाहते हैं. वो इस बात को स्वीकार करते हैं कि गाँव के विकास के लिए पढ़े-लिखे नौजवानों को आगे आना होगा. अच्छी नौकरी और ऊँचा वेतन छोड़ राजनीति में आकर शोहरत और धन कमाने वाले लोगों की सूची राजस्थान में बढ़ती जा रही है. अब हनुमान भी इस सूची में शामिल हो चुके हैं. Next….
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