अफ़गानिस्तान को हिंसाग्रस्त देश के रूप में जाना जाता है. प्राकृतिक सुंदरता के बावजूद अक्सर वहाँ से हिंसा की ख़बरे आती रहती हैं. हिंसा के दौरान कई लोगों का मरना या घायल होना स्वभाविक है. घायल हुए लोगों के सामने उनका पूरा जीवन होता है जिसे शारीरिक अधूरेपन के साथ जीना मुश्किल हो जाता है. फिर भी ज़िंदगी जी रहे लोगों के मन में वो यादें काले बादलों की तरह कभी भी दस्तक दे जाती है.
हालांकि, अब्दुल रहीम के साथ ऐसा नहीं है. कांधार में बम निष्क्रिय करने के दौरान उनको अपने दोनों हाथ गँवाने पड़े. 30 वर्षीय सैनिक अब्दुल रहीम के सामने अभी पूरी जिंदगी पड़ी थी. बिना हाथों के जिंदगी जीने का मतलब उन्हीं को पता हो सकता जिनके हाथ नहीं होते. हाथ वालों के लिये तो ये महज कल्पना ही होगी. तीन वर्ष पहले हाथ गँवा चुके अफ़गानी सैनिक अब्दुल को विवशता में जीने के अलावा कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.
Read: पोर्न देखते हुए इस डॉक्टर ने किया सर्जरी और फिर…
लेकिन अब्दुल की किस्मत को पलटी खानी थी, जो उसने खायी. जब भारत की ओर से वहाँ हाथों के प्रतिरोपण के लिये शल्य चिकित्सा(सर्जरी) की शुरूआत की गयी तो अब्दुल के मन में हाथों के साथ पुन: सामान्य जिंदगी जीने की उम्मीद जाग उठी. चार महीने पहले अब्दुल ने इस सेवा के लिये अर्ज़ी दी जो मंजूर कर ली गयी. 20 शल्य चिकित्सकों के सहारे 15 घंटों तक चली सघन शल्य चिकित्सा के बाद अब्दुल रहीम के दोनों हाथ सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर दिये गये. अब्दुल रहीम को मिले ये दोनों हाथ केरल में एक सड़क दुर्घटना में जान गँवा चुके 54 वर्षीय पीड़ित के हैं.
Read: शाम होते-होते चेहरा बदल गया
इस सफल शल्य चिकित्सा के बाद अब्दुल रहीम पहले ऐसे अफ़गानी सैनिक बन चुके हैं जिनके दोनों हाथों का सफल प्रत्यारोपण हुआ है. दैनिक गतिविधियों को धीरे-धीरे करने के कारण उनके प्रत्यारोपित दोनों हाथ सुचारू ढ़ंग से काम करने लगे हैं. कोच्चि के एक अस्पताल में अभी सघन फिज़ियोथेरेपी से गुजर रहे अब्दुल रहीम जैसे पीड़ितों के लिये सचमुच हाथों का प्रत्यारोपण वरदान है.Next….
Read more:
Read Comments