क्यों ऐसा होता है कि कोई इंसान किसी दूसरे इंसान का लिहाज नहीं करता? क्यों ऐसा होता है कि कोई इंसान अपने किसी व्यक्तिगत लाभ के लिये किसी भी हद से गुजर जाने को तैयार होता है? क्यों कोई अपनी झुंझलाहट दूसरों पर उतारता है? कैसे कोई अपने लाभ के लिये किसी दूसरे को उसके कर्तव्य पथ से विमुख होने को मज़बूर करता है? अगर आपको लग रहा है कि ऐसा केवल भारतीय करते हैं तो मुआफ़ कीजिये! आप अंशत: गलत हैं.
तारीख 10 जुलाई, वर्ष 2015, यानी तीन दिन पहले की बात. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नई दिल्ली स्थित डब्ल्यू डब्ल्यू एफ सभागार में पूर्व निर्धारित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में शामिल होने के लिये वहाँ उपस्थित थे.
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कार्यक्रम की शुरूआत हो चुकी थी. वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों ने सभागार के प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था. सभागार में प्रवेश लेने की समय सीमा समाप्त होने के बाद उसके प्रवेश द्वार को सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया जाता है. यह एक आम चलन है.
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तभी सभागार में प्रवेश लेने की चाहत लिये एक विदेशी महिला वहाँ उपस्थित सुरक्षाकर्मियों से अदंर जाने देने का अनुरोध करती है जिसे वो ठुकरा देता है. अनुमति न मिलने पर वह विदेशी महिला सुरक्षाकर्मी पर भड़क उठती है. वह सुरक्षाकर्मी को उसकी नौकरी छिन जाने की धमकी देती है. इस पर भी सुरक्षाकर्मी उसे अंदर जाने की अनुमति नहीं देता है तो वह कुछ देर अपने मोबाइल फोन को स्क्रॉल करती है. फिर अचानक से वह उस सुरक्षाकर्मी को थप्पड़ जड़ने का प्रयास करती है. हालांकि वह ऐसा करने में आंशिक रूप से असफल हो जाती है. इसके बाद वहाँ खड़े एक व्यक्ति से उसकी तीखी नोंक-झोंक हो जाती है.
नेताओं, मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों के कार्यक्रम में प्रवेश के लिये लोगों की कतारें लगती है. कई बार ज्यादा भीड़ होने के कारण लोगों को प्रवेश नहीं मिल पाता. अनेकों बार कार्यक्रम समय से शुरू हो जाने के कारण भी लोगों को प्रवेश नहीं मिल पाता. ऐसी स्थिति में एक ओर जहाँ कुछ लोग अपनी पहुँच का रौब दिखा सुरक्षाकर्मियों पर धौंस जमाने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरी ओर सुरक्षाकर्मी अपने कर्तव्य से बँधे होते हैं. इस वीडियो से सवाल यह खड़ा होता है कि, “क्या किसी को महिला होने का फायदा उठा वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों पर हाथ उठाने की अनुमति है?”Next…..
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