कड़कड़ाती सर्दियों में जब आप गर्म बिस्तर पर अपनी दिनभर की थकान मिटा रहे थे तो एक अकेली औरत अपनी बेटी के साथ खुले आसमान के नीचे सिर छुपाने के लिए मजबूर थी. उसे न जाने कितने ही ऐसे मौसमों में अपने दिन और रातें वाशरूम में बितानी पड़ी. ऐसे हालातों में वो अकेली नहीं बल्कि उसकी बेटी भी इसी बदतर हालत में लगभग एक साल तक रह रही थी.
वीजा की अवधि समाप्त होने पर जर्मन निवासी एक महिला और उसकी बेटी को निर्वासितों जैसा जीवन जीने को मजबूर हो गई. कहीं भी शरण न मिलती देखते हुए उन्होंने साइप्रस के लार्नेका एयरपोर्ट की कार पार्किंग में शरण लेनी पड़ी.
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मामले को तूल पकड़ता देखते हुए साइप्रस एयरपोर्ट अधिकारियों ने जर्मन एंबेसी से संपर्क किया है जिसमें इन दोनों को यहां से हटाने के विषय में बात की जा रही है. एयरपोर्ट के एक मुख्य अधिकारी का कहना है कि ‘हमने मानवता के आधार पर दोनों को यहां रहने दिया लेकिन हमारी भी कुछ सीमाएं है जिनको तोड़कर हम काम नहीं कर सकते.एयरपोर्ट सार्वजनिक सेवाएं देने के लिए है.एयरपोर्ट परिसर में यात्रियों के लिए सुविधाएं हैं, हम किसी इंसान को परिसर में गैर-कानूनी रूप से रुकने की इजाजत नहीं दे सकते.
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